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हर जगह अफवाह ही भरी है ,

हर जगह अफवाह ही भरी है ,

अफवाहों में बह रही दुनिया ।
सच से सदा हम दूर ही भागे ,
सच कहाॅं ये कह रही दुनिया ।।
दुनिया को हम यह कह रहे हैं ,
हम भी कहाॅं इससे अलग हैं ?
दुनिया संग भाग रहे हैं हम भी ,
हम कहाॅं अभी हुए सजग हैं ।।
गहरी नींद में चल रहे हैं सारे ,
क्या नींद में चलने की बीमारी है ?
नींद में चलने की है यह बीमारी ,
या अफवाह बनी महामारी है ।।
अफवाह रूपी न पालो बीमारी ,
सत्यं मार्ग पर भी तो तुम आओ ।
तुम तो हो अफवाहों से अलग ,
सत्य मार्ग अब तुम दिखलाओ ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश छपरा ( सारण ) बिहार ।
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