ठंड में अग्नि आकर्षित करती है
ऋषि रंजन पाठकसर्द हवाओं का बिछा हुआ घेरा,
मटपा में टिकरी पर जुटा हर डेरा।
अलाव की लपटें चमकें चट-चट,
ठंड को हराए, फैलाए राहत।
सर्दी की रातें, धुंध से ढकी,
खेतों में ठिठुरन, हवा भी ठंडी ।
टिकरी पर अक्सर जलता अलाव,
हर दिल को देता सुकून का भाव।
पूस की रातें, ठिठुरता शरीर,
ठंडी हवाएं, कांपते अधीर।
रिश्तों की गर्मी में घुलती है बात,
जहां जलती है बोरसी हर रात।
जहां न हो सुविधाएं महान,
बोरसी देती है अपनी पहचान।
मिट्टी के गोले से बनी है सादगी,
भरती ठिठुरते जीवन में ताजगी।
लकड़ियां चटकतीं, धुआं सा उठे,
उस गर्मी में दिलों के फासले घटें।
किस्से कहानियों का दौर चले,
हंसी-ठिठोली में हर गम पिघले।
बुजुर्ग सुनाएं अपने ज़माने की बात,
नए सपने देखें युवा, भरें नई आस।
बच्चे दौड़ें, मस्ती करें इधर-उधर,
अलाव की गरमी से गुलजार हो घर।
बुजुर्ग पास बैठे, अनुभव सुनाते,
गांव के किस्से, पुरानी बातें दोहराते।
युवा खामोशी से सुनते हैं ध्यान,
उनके भीतर जगते हैं नए अरमान।
धुएं की गंध, लकड़ियों का जलना,
अलाव के संग सबका करीब आ मिलना।
यह आग नहीं, रिश्तों की डोर है,
गांव के जीवन का सच्चा शोर है।
चाहे पूवाल चोरी करना पड़े,
लकड़ियां क्यों न मांगना पड़े।
चाहे सूखे पत्ते जमा करना पड़े,
चाहे कागज बटोरना पड़े।
पर सर्द मौसम में अलाव का जुगाड़ होता है,
हर दिल में गरमी का उत्साह होता है।
यह है मेरा अपना प्यारा मटपा गांव ,
जहां हर ठिठुरन पर जज्बा कमाल होता है।
मेरे गांव में आज भी बोरसी जलती है,
सर्द रातों में यही सुकून सी लगती है।
लोग बैठते हैं उसके पास, घेरा बनाकर,
जब कोई जलाता है भीड़ लगने लगती है।
आधुनिकता चाहे जितनी बढ़े,
पर बोरसी का अपना स्थान रहेगा।
सादगी और सहारे का प्रतीक,
मटपा में टिकरी पर जुटा हर डेरा।
अलाव की लपटें चमकें चट-चट,
ठंड को हराए, फैलाए राहत।
सर्दी की रातें, धुंध से ढकी,
खेतों में ठिठुरन, हवा भी ठंडी ।
टिकरी पर अक्सर जलता अलाव,
हर दिल को देता सुकून का भाव।
पूस की रातें, ठिठुरता शरीर,
ठंडी हवाएं, कांपते अधीर।
रिश्तों की गर्मी में घुलती है बात,
जहां जलती है बोरसी हर रात।
जहां न हो सुविधाएं महान,
बोरसी देती है अपनी पहचान।
मिट्टी के गोले से बनी है सादगी,
भरती ठिठुरते जीवन में ताजगी।
लकड़ियां चटकतीं, धुआं सा उठे,
उस गर्मी में दिलों के फासले घटें।
किस्से कहानियों का दौर चले,
हंसी-ठिठोली में हर गम पिघले।
बुजुर्ग सुनाएं अपने ज़माने की बात,
नए सपने देखें युवा, भरें नई आस।
बच्चे दौड़ें, मस्ती करें इधर-उधर,
अलाव की गरमी से गुलजार हो घर।
बुजुर्ग पास बैठे, अनुभव सुनाते,
गांव के किस्से, पुरानी बातें दोहराते।
युवा खामोशी से सुनते हैं ध्यान,
उनके भीतर जगते हैं नए अरमान।
धुएं की गंध, लकड़ियों का जलना,
अलाव के संग सबका करीब आ मिलना।
यह आग नहीं, रिश्तों की डोर है,
गांव के जीवन का सच्चा शोर है।
चाहे पूवाल चोरी करना पड़े,
लकड़ियां क्यों न मांगना पड़े।
चाहे सूखे पत्ते जमा करना पड़े,
चाहे कागज बटोरना पड़े।
पर सर्द मौसम में अलाव का जुगाड़ होता है,
हर दिल में गरमी का उत्साह होता है।
यह है मेरा अपना प्यारा मटपा गांव ,
जहां हर ठिठुरन पर जज्बा कमाल होता है।
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सर्द रातों में यही सुकून सी लगती है।
लोग बैठते हैं उसके पास, घेरा बनाकर,
जब कोई जलाता है भीड़ लगने लगती है।
आधुनिकता चाहे जितनी बढ़े,
पर बोरसी का अपना स्थान रहेगा।
सादगी और सहारे का प्रतीक,
हर दिल में इसका सम्मान रहेगा।
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