मुस्लिम हित की बात करोगे, धर्मनिरपेक्ष कहलाओगे,
हिन्दू हित की सोच रहे हो, साम्प्रदायिक कहलाओगे।है संविधान अनूठा अपना, समानता का अधिकार दिया,
हैं अधिकार जुदा सबके, बोलोगे दुश्मन कहलाओगे।
बहुसंख्यक अल्पसंख्यक, राग अलापा जाता है,
अल्पसंख्यक का आधार, नहीं बताया जाता है।
संशाधनों पर पहला हक़, सत्ता हमको समझाती,
समान नागरिक समान संहिता, धूमिल हो जाता है।
आरक्षण के नाम पर देखो, कहाँ अधिकार समान रहे,
पढ़े लिखे- कुशल योग्य, सड़कों पर धूल समान रहे।
जाति धर्म और क्षेत्रवाद, समानता का मज़ाक़ बना रहे,
धर्म नाम पर क़ानून अलग, कब गीता क़ुरान समान रहे?
मुस्लिम शरीयत को माने, हिन्दू संविधान की बात,
अल्पसंख्यक करते हैं, बहुसंख्यक हित पर आघात।
हिन्दू सहिष्णु बना रहे, सब कुछ सहकर भी मौन रहे,
न्याय प्रक्रिया शासन सत्ता, करते सदा हम पर संघात।
शिक्षा के भी मापदंड, सबके अलग अलग बने,
गुरूकुल सारे बंद हुए, मदरसे कैसे बहुत बने?
धर्म कर्म की शिक्षा, क़ुरान बाइबिल का गुणगान,
गीता रामायण की शिक्षा, क्यों यह प्रतिबंध बने?
मन्दिर पर नियंत्रण सरकारी, मस्जिद मे पगार सरकारी,
चर्चों की ज़मीन सरकारी, वक़्फ़ बोर्ड पर सम्पत्ति सारी।
भेदभाव पग पग पर दिखता, निकम्मों को मुफ़्त अनाज,
वही दिखाई देते बढ़ते, जो राष्ट्र हितों से करते ग़द्दारी।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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