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साहित्य सारथी बलभद्र कल्याण एवं प्रफुल्लचंद्र ओझा 'मुक्त' की मनायी जयंती

साहित्य सारथी बलभद्र कल्याण एवं प्रफुल्लचंद्र ओझा 'मुक्त' की मनायी जयंती

  • साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुई राष्ट्रीय गीत-गोष्ठी, दी गयी काव्यांजलि
पटना, २७ जनवरी। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में रविवार को बिहार की दो साहित्यिक विभूतियों बलभद्र कल्याण एवं प्रफुल्लचंद्र ओझा 'मुक्त' की जयंती काव्य-रस के साथ मनायी गयी। दोनों विभूतियों की विनम्र स्मृति को कवियों और कवयित्रियों ने सश्रद्ध काव्यांजलि अर्पित की।

अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के ९२ वर्षीय प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि बिहार के साहित्यकारों ने कल्याण जी 'साहित्य-सारथी' की लोक उपाधि प्रदान की थी। कल्याण जी जब तक जीवित रहे साहित्य और साहित्यकारों के कल्याण का रथ चलते रहे। मुक्त जी भी कथा-साहित्य और काव्य-सौष्ठव के लिए विख्यात और अपने समय के एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर थे।

अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि आज से तीन दशक पूर्व, जिन दिनों बिहार की राजधानी पटना में साहित्यिक गतिविधियों पर विषाद का ताला पड़ गया था और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र रहे बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने भी मौन धारण कर लिया था, तब साहित्य-सारथी बलभद्र कल्याण ने अपने द्विचक्री-रथ पर आरूढ़ होकर नगर में साहत्यिक चुप्पी को तोड़ा था और एक नवीन सारस्वत-आंदोलन का शंख फूँका । उन्होंने भारत के प्रथम राष्ट्रपति तथा हिन्दी के अनन्य सेवक देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद के नाम से स्थापित 'राजेंद्र साहित्य परिषद' के माध्यम से साहित्यिक आयोजनों की झड़ी लगाकर राजधानी को पुनः जीवंत बना दिया।

प्रफुल्लचंद्र ओझा 'मुक्त' को स्मरण करते हुए डा अनिल सुलभ ने कहा कि, अपने समय के अग्रिम-पंक्ति के साहित्यकार रहे मुक्त जी आकाशवाणी से भी सक्रियता से जुड़े रहे। वे मंचों की शोभा ही नही विद्वता के पर्याय भी थे। उन्होंने आदिकवि महर्षि बाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रचित विश्व-विश्रुत महाकाव्य 'रामायण' के हिन्दी में परिष्कृत अनुवाद का श्रम-साध्य प्रकाशन किया था, जो एक बड़ी उपलब्धि है। यह अनुवाद उनके विद्वान पिता साहित्याचार्य चंद्रशेखर शास्त्री ने किया था।

आयोजन के मुख्य अतिथि और दूरदर्शन बिहार के पूर्व कार्यक्रम प्रमुख डा राज कुमार नाहर, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, कल्याण जी की पुत्री सुजाता वर्मा और जमाता आशीष वर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इसके पूर्व सम्मेलन-प्रांगण में भव्य रूप में गणतंत्र-दिवस समारोह मनाया गया। सम्मेलन अध्यक्ष डा सुलभ ने राष्ट्रीय-ध्वज का आरोहण किया। अपने संबोधन में उन्होंने भारत के प्राचीन गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा में साहित्यकारों के योगदान का आह्वान किया।

इस अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय गीत-गोष्ठी का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ शायर आरपी घायल, डा रत्नेश्वर सिंह, बच्चा ठाकुर, आचार्य विजय गुंजन, डा पुष्पा जमुआर, श्याम बिहारी प्रभाकर, शमा कौसर 'शमा', डा शालिनी पाण्डेय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी,सिद्धेश्वर, जय प्रकाश पुजारी, ईं आनन्द किशोर मिश्र, लता प्रासर, डा मीना कुमारी परिहार, सुनीता रंजन, डा शमा नासमीन नाजां', नीता सहाय, सदानन्द प्रसाद, डा आर प्रवेश, डा नागेन्द्र शर्मा, मृत्युंजय गोविंद, अरविंद अकेला, शंकर शरण आर्य, अर्जुन प्रसाद सिंह, अरुण कुमार श्रीवास्तव, पूनम सिन्हा, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, अजीत कुमार भारती ने राष्ट्रीय-भाव के अपने गीतों से देश-भक्ति का भाव जगाया।मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।

समारोह में, सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा, वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज, डी एन ओझा, संजीव कर्ण, डा चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद ठाकुर, संजय कुमार, नन्दन कुमार मीत आदि बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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