मोहब्बत पूजी जाती है
जब हम पास होते थेतो दूर जाने को कहते थे।
जब दिलकी धड़कनों को
दिलसे सुनना होता था।
तब तुम्हें कही और
उलझ जाना पड़ता था।
और मिलने मिलाने का
मौका चला जाता था।
लाख चाहकर भी हम
तुमसे मिल नहीं पाते थे।
और दिल की बातें को
दिलमें रोकना पड़ता था।
समय निकलता गया और
हम दोनों वही रुके रहे।
हम उन्हें देखते रहे और
वो हमें देखकर चलते रहे।
इसी तरह से हम दोनों
खुदको ही ढूँढते रहे।
और संकोच के कारण
अपनी बातें कह न सके।
परंतु जमाने की नजरों में तो
लैला-मंजु समझे जाने लगे।
और साफ-पाक मोहब्बत का
नया अंदाज दिखा दिया।
की दूर होकर भी हम दोनों
मोहब्बत दिलसे कर सकते है।
और दिलों में उमंगो के
नये दीप जला सकते है।
और नये दौर में नई मोहब्बत
दुनियां को दिखा सकते है।
और श्रध्दा और आस्था से
मोहब्बत को पूजा सकते है।
और अपनी मोहब्बत को
दुनियाँ में अमर कर देते है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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