आनंद की भोर,सनातन की ओर
सृष्टि पटल दिव्य चेतना,स्पर्शन परमानंद अपार ।
स्नेह प्रेम उद्गम स्थल,
उरस्थ शोभित सुसंस्कार ।
मुदित मना मानस मुनियों सा,
मंथन चिंतन ज्ञान ध्यान छोर ।
आनंद की भोर,सनातन की ओर ।।
यज्ञ पावन मानवता,
तन मन धन उपकार ।
ब्रह्म ऊर्जा सदा शीर्ष,
जीवन प्राण आधार ।
शमन दमन आडंबर पाखंड,
सर्व सुख मंगल कामना पुरजोर
आनंद की भोर,सनातन की ओर ।।
सत्य प्रेम सेवा करुणा,
जन जन हृदय अंगीकार ।
त्याग समर्पण तप संयम,
हर पल सतयुग सम संसार ।
लावण्य प्रभा मनुज मुख,
नित ओजस्वी मुस्कान सराबोर ।
आनंद की भोर,सनातन की ओर ।।
गुरु वचन सद्गुण संगम,
शिक्षण अधिगम अनूप सार ।
परिष्कृत चितकर्म वृत्ति,
नव प्रकाश नव विस्तार ।
नर नारी निः श्रेयस निश्छल,
परस्पर मर्यादा आदर गुणगान ठोर ।
आनंद की भोर,सनातन की ओर ।।
*कुमार महेंद्र)
(स्वरचित मौलिक रचना)
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