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रिश्तों की नाज़ुक डोर

रिश्तों की नाज़ुक डोर

एक सुंदर और मजबूत रिश्ता विश्वास, सम्मान, समझदारी और प्रेम की नींव पर टिका होता है। यह एक नाज़ुक डोर की तरह होता है, जिसे सावधानी से सहेज कर रखना होता है। लेकिन, कुछ ऐसी भावनाएँ और व्यवहार हैं जो इस डोर को कमज़ोर कर सकती हैं और अंततः इसे तोड़ भी सकती हैं। ऊपर दी गई पंक्तियाँ इन्हीं ख़तरों की ओर इशारा करती हैं:

हृदय में शंका : जब रिश्तों में विश्वास की कमी हो जाती है, तो शंका का जन्म होता है। शंका एक ज़हर की तरह है जो धीरे-धीरे रिश्ते को खोखला कर देता है। हर बात में संदेह, हर कार्य में शक, रिश्तों की नींव को हिला देता है।

व्यवहार में गुरुर : अहंकार एक ऐसा भाव है जो व्यक्ति को अंधा बना देता है। गुरुर में डूबा व्यक्ति दूसरों को कमतर आंकने लगता है और रिश्तों में दूरियाँ पैदा हो जाती हैं। झुकना और माफ़ करना, जो रिश्तों की मज़बूती के लिए ज़रूरी है, गुरुर में असंभव हो जाता है।

बुद्धि में जिद : जिद रिश्तों में टकराव का कारण बनती है। अपनी बात पर अड़े रहना, दूसरों की बात न सुनना, रिश्तों में कड़वाहट पैदा करता है। समझदारी और समझौता रिश्तों को बचाने के लिए ज़रूरी हैं, लेकिन जिद के आगे ये बेमानी हो जाते हैं।

बातों में ईर्ष्या : ईर्ष्या एक नकारात्मक भावना है जो दूसरों की सफलता या खुशी को देखकर उत्पन्न होती है। ईर्ष्या से भरी बातें रिश्तों में ज़हर घोल देती हैं। प्रशंसा और प्रोत्साहन की जगह आलोचना और निंदा रिश्तों को कमज़ोर करती है।

जब ये चारों चीज़ें - शंका, गुरुर, जिद और ईर्ष्या - किसी रिश्ते में प्रवेश कर जाती हैं, तो उस रिश्ते की पराजय निश्चित है। इसलिए, ज़रूरी है कि हम इन नकारात्मक भावनाओं से बचें और अपने रिश्तों को विश्वास, सम्मान, समझदारी और प्रेम से सींचते रहें। याद रखें, रिश्ते अनमोल होते हैं और इन्हें बचाने के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)


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