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जीवन का आधार

जीवन का आधार

देखो जग से नाता जोड़ा
मानवता को दिलसे जोड़ा।
मानव को मानव से मिलाया
मानवता का धर्म निभाया।
अपनो ने ठोकराया हमको
फिर भी अपनाया उनको।
अपना फर्ज निभाया हमने
सबको गले लगाया हमने।।


दूर दृष्टि से देखना हमने
तब जग को जाना हमने।
क्या रखा है मोह माया में
क्या पाया है जग से हमने।
राग द्वेष को छोड़ के हमने
प्रेम भाव जगाया हमने।
हिल मिलकर रहना ही
इस जग का मूल मंत्र ये।।


जब भी मौका मिले तुम्हें तो
दीन दुखी का दर्द हरो तुम।
दया भाव दिलमें रखकर के
दान करो खुले हाथ से तुम।
दान से बढ़कर जग में
और नहीं है अब कुछ।
दान ही जीवन का है
अब सच्चा आधार।।


जय जिनेंद्र

संजय जैन "बीना" मुंबई
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