इंसानियत सिमट - सी गई है
सुरेन्द्र कुमार रंजनअंधेरों से घिरी इस दुनियाँ में,
इंसानियत सिमट - सी गई है।
इंसानों के कर्मों की दीप्ति,
ग्रहण में घिर-सी गई है।
अच्छाइयां और सच्चाईयां सब,
किताबों में बिखरे पड़े हैं।
जीवन में खोजो जो इनको,
अस्त-व्यस्त हो बिखरे पड़े हैं ।
इस गुलिस्ताँ, इस चमन की क्या सोंचे ,
जब आदमियत ही पिघल-सी गई है।
अंधेरों से घिरी इस दुनिया में,
इंसानियत भी सिमट - सी गई है।
पहले फरिश्ते भी चाहते थे इंसान बनना,
इंसानियत ही जब मिशाल बनी थी।
आज वह इंसान, इंसान न रहा,
हैवानियत उनमें उमड़-सी गई है।
जिस तरफ भी देखो आज,
बहशियत की आग भड़क-सी गई है
अंधेरों से घिरी इस दुनियाँ में ,
इंसानियत आज सिमट-सी गई है।
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