पुरानी बातें
क्यों लिए हो पुरानी ये बातें ,
आओ पुरानी बातें ये भूलाऍं ।
ढो रहे हो पुरानी ये रंजिशी ,
आओ पुरानी रंजिशी मिटाऍं ।।
भूल जाओ ईर्ष्या द्वेष की बातें ,
आओ प्यार का हाथ बढाऍं ।
भूलकर भूल चूक लेनी देनी ,
आओ पावन महाकुंभ नहाऍं ।।
त्याग चलें ये कुरीति बुराईयाॅं ,
पाखंड आडंबर आओ मिटाऍं ।
खंड खंड में हम आज बॅंटे हैं ,
आओ हम मिल एक हो जाऍं ।।
चला गया रंजिशी का जमाना ,
तुम किस भूल में आज पड़े हो ।
चल पड़े तुम अनीति की राहें ,
विपरीत सत्य मार्ग से डरे हो ।।
धो डालो सड़ी गली ये सोचें ,
निर्मल पावन मस्तिष्क पाऍं ।
नहीं रहे हम आदिम मानव ,
नवयुग आधुनिकता दिखाऍं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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