बेटा डाँट रहा बाबा को, बाबा चुप चुप सहते हैं,
कुछ घर की मर्यादा, कुछ जग समाज से डरते हैं।हिम्मत उनमें बहुत घनी, उसको धूल चटाने की,
उसकी माँ के तानों से, बाबा आशंकित रहते है।
बिगड़ गये बेटे को अक्सर, फटकार लगानी पड़ती है,
नहीं मानता बड़ों का कहना, दुत्कार लगानी पड़ती है।
कभी कभी तो बेदख़ली का, कठोर निर्णय लेना पड़ता,
बात बने ना जब बात से, हवालात दिखानी पड़ती है।
नये दौर में हमने तो, अब बदलना सीख लिया,
क़ानून के प्रावधान, हमने भी पढ़ना सीख लिया।
कुछ धन सम्पत्ति बाँटी, कुछ पर रखा हक़ अपना,
स्वार्थ भरी दुनिया में, हमने भी जीना सीख लिया।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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