नया साल के दू दिन पहिले ,
एगो बड़ सभा रहे बटोराईल ।आलू गोभी बैंगन आ पालक ,
संग में कोंहड़ो रहे आईल ।।
लउकीओ रहे उहाॅं लउकल ,
आलूओ के देखलीं फउकल ।
गोभीओ रहे खूब तरनाईल ,
बैंगन बहिना सबके समझाईल ।।
आवत अब नया साल बा ,
नया साल के मन में उबाल बा ।
हमनी पर अब महंगी छाई ,
मानव में सवाद के जाल बा ।।
तबहीं उठके बोलली जीरा ,
बड़ा देखावत बाड़ भाव ।
तेल जीरा दूनों जो छोड़ दे ,
सभनी के भाव हो जाई दुर्भाव ।।
कहे कोंहड़ चुप जीरा बहिना ,
सकराॅंत में होई हमरो पूजा ।
घर घर पहिले हमहीं पूछाईब ,
तबहीं अईहें कवनों दूजा ।।
खड़ा होके बोलल ऑंटा मैदा ,
एके माईके हम सब हईं पैदा ।
बसंतपंचमी में सब मिल जाईं ,
एही में हमनी के बाटे फैदा ।।
एकदिन राज से जीवन ना कटी ,
बनल रहीं मिल एके सौदा पटी ।
एक भाव में मिल रहब हमनीं ,
तब हमनी के ई दूध ना फटी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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