गाँव गोंएड़ा खेतवन में,
फसल लहलहात बा।देख कर के हरियाली,
हियरा हुलस जात बा।।
मिहनत किसान करे,
नेता लोग के पेट भरे।
अइसन बेइंसाफी अब,
तनिको ना सहात बा।।
खेत में अझुराइल रहे,
माटी में सनाइल रहे।
इहे भाग्य ह किसान के,
बात केकरो ना बुझात बा।।
पइसा कमाए वाला,
बाबू लोग सब खरीद लेला।
औने पौने दाम में सब,
फसल बिकल जात बा।।
केहू ना बा देखेवाला,
किसान हहरत रह जाला।
किसान के मिहनत के दाम,
नेता सब का हाथ से लिखात बा।।
जेह दिन किसान भाई,
खेती कइल छोड़ जाई।
देखी सारा दुनिया जे,
कतना लोग रूपया खाई।।
येह से बड़ा कौनो सच्चाई नइखे,
फिर भी ना बुझात बा।
गाँव गोंएड़ा खेतवन में,
फसल लहलहात बा।
देख कर के हरियाली,
हियरा हुलस जात बा।।
जय प्रकाश कुवंर
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