आयुष जिनगी मायूस हो गईल
जिनगी अईसन बाटे डर गईल ,जईसे तन से हिर्दा उखड़ गईल ,
जिनगी भईल अईसन मायूस ,
जईसे अपने जिनगी सड़ गईल ।
पहिला वार कोरोना के भईल ,
दोसर वार उदर के आपरेशन ।
तीसर वार हार्ट अटैक भईल ,
अधूरा भईल जीवन के सेशन ।।
जिनगिए में दहशत भर गईल ,
मरे से पहिले जीवन मर गईल ,
जोगत रहीं जवध हम जीवन ,
पूरा जीवन अब बिखर गईल ।
सारा सोच त रह गईल अधूरा ,
सोचलीं जवन ना भईल पूरा ।
पियत रहीं जे अमृत समझके ,
उहे निकलल जहर सम सुरा ।।
अश्रु गम दे जीवन भींगो गईल ,
जतना कमईलीं सब खो गईल ,
अब का हम कर पाईब कमाई ,
आयुष जिनगी मायूस हो गईल ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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