कथा, प्रवचन और सत्संग।
जय प्रकाश कुवंर
कथा का मतलब होता है, जो कहा जाय अर्थात मौखिक बात। इसका एक मतलब धार्मिक कहानी कहने की भारतीय शैली भी है। हिन्दू धर्म में यह एक अनुष्ठानिक घटना है, जिसमें एक पुजारी ब्राह्मण कथावाचक हिन्दू धार्मिक ग्रंथों से कहानियाँ सुनाते हैं।ये कहानियाँ सत्यनारायण भगवान की पूजा तथा अन्य प्राचीन देवी देवताओं से जुड़ी होती हैं। हर कथा में कुछ पात्रों का होना आवश्यक है। जैसे कथाकार, कथा का पृष्ठभूमि चाहे वह धार्मिक हो अथवा काल्पनिक हो, कथावाचक और कुछ श्रोता।
भारतवर्ष में साधारणतया हिन्दू धर्म के अनुष्ठानिक घटनाओं में सत्यनारायण भगवान की कथा पूजा होती है, जिसमें कथावाचक पुरोहित धार्मिक ग्रंथ से सत्यनारायण भगवान की कथा कहते हैं और यजमान अपने परिवार तथा स्वजनों एवं मित्रों के साथ कथा सुनते हैं। इस सत्यनारायण भगवान की कथा में पहले पुरोहित अपने यजमान द्वारा दिए गए आर्थिक उपहार को स्वीकार कर कथा सुनाते थे। लेकिन जब से मंहगाई बढ़ी है, तथा दूसरे कथावाचकों द्वारा भारी भरकम आर्थिक लाभ लिया जाने लगा है, तब से सत्यनारायण कथा के कथावाचक पुरोहित भी ज्यादा पैसे पाने की मंशा रखने लगे हैं। अब कुछ ज्यादा व्यस्त पुरोहित कम पैसा देने वाले यजमान के यहाँ कथा वांचने में और पूजा कराने में हिचकिचा रहे हैं। फिर भी कथावाचक का काम कोई योग्य ब्राह्मण पुरोहित ही समपन्न करते हैं।
प्रवचन का मतलब वेद पुराण आदि का उपदेश करना तथा उसके तथ्यों को विशेष रूप से कहना या समझाना होता है। ये बातें प्रवचन में वक्ताओं द्वारा परोपकार की दृष्टि से कही जाती हैं। प्रवचन में धार्मिक एवं मौलिक दोनों तरह की बातें भी होती हैं। इसमें भी मौखिक रूप से ही विचार व्यक्त किया जाता है। प्रवचन करने वाले को प्रवक्ता कहते हैं। इसे सुनने से मनुष्य को शांति, परमानन्द और विरक्ति आती है। प्रवचन करने वालों को कथावाचक भी कहते हैं। इसमें मुख्य नाम जया किशोरी जी, देवकिनन्दन ठाकुर, अनिरूद्धाचार्य जी महाराज मोरारी बापू, धीरेन्द्र शास्त्री आदि का आता है। आज कल प्रवचन देना कुछ लोगों के लिए कमाई का मुख्य माध्यम बन गया है। इनमें से कुछ को एक एक दिन के प्रवचन और कथा वाचन के लिए लाखों रुपए मिलते हैं।
सत्संग एक धार्मिक समूह की बैठक होती है। इसमें आध्यात्मिक चर्चा कर ईश्वर, जीव और प्रकृति के बारे में बताया जाता है। इसमें भाग लेने वाले लोग एक दूसरे के अनुभवों और विचारों को साझा करते हैं। इससे व्यक्ति के मन के बुरे विचार और पाप दूर होते हैं। इससे विवेक जागृत होता है। सत्संग से काम, क्रोध आदि दोषों का निवारण होता है। सत्संग में घर गृहस्थी की बात न होकर केवल भगवान के बारे में ही चर्चा होती है। यह हर युग में एक समान प्रभावशाली होता है और राम कृष्ण की चर्चा के चलते मनुष्य की लगन सहज में ही भगवान में लग जाती है। एक प्रभावी सत्संग मिलना मनुष्य के लिए बहुत ही कठिन है। सत्संग करने का अधिकार इस दुनिया में केवल तत्वदर्शी संत को होता है। क्योंकि तत्वदर्शी संत गीता, वेदों और सभी सदग्रंथो को जानने वाला होता है। सत्संग में मनुष्यों को अवगत कराया जाता है कि चोरी, रिश्वतखोरी तथा नशा आदि करने से मनुष्य नरक का भोगी और महापाप का भागी बनता है। इस कारण से सत्संग सुनना मनुष्य के लिए बहुत जरूरी है।
आज कल कुछ ढोंगी सत्संगियों ने इस इस पवित्र सत्संग कार्यक्रम की महत्ता को घटाया है, अन्यथा इसमें पैसा कमाने की कोई परंपरा नहीं रही है। हाल के सालों में भारत में कई सत्संगी बाबा मशहूर हुए हैं, जिनके सत्संग अथवा कथा कार्यक्रम में लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं और चढ़ावा देते हैं। इस प्रकार के सत्संग में कमाई का कारोबार जबरदस्त होता है। उत्तर प्रदेश के हाथरस में "भोले बाबा " के सत्संग कार्यक्रम में हाल में हुआ भगदड़ और बुरा हाल एक ज्वलंत उदाहरण है। पंजाब में जालंधर के ब्यास नदी के तट पर डेरा ब्यास सत्संग आश्रम भी आर्थिक रूप से काफी संपन्न है। जबकि सिख धर्म में सत्संग का मतलब है " सच्चे विश्वासियों की सभा " । एक और सत्संगी हरियाणा के संत रामपाल जी महाराज के आश्रम का साम्राज्य देश के कई हिस्सों में फैला हुआ है और उनकी अरबों की चल और अचल संपत्ति है।
इस प्रकार यह देखा जा रहा है कि कथा, प्रवचन और सत्संग में धार्मिक रूप से अनेक समानता होते हुए भी आर्थिक रूप से एक बहुत बड़ा अंतर आ गया है। उससे भी बड़ा अंतर यह दिखाई पड़ रहा है कि प्रवचन और सत्संग में अब ज्यादातर ढोंगी बाबाओं का बोलबाला हो गया है,और कथा, सत्संग एवं प्रवचन में ईश्वर तथा हिन्दू धार्मिक कथाओं और मान्यताओं पर ज्यादा ध्यान न देकर आर्थिक उपार्जन पर ज्यादा ध्यान केंद्रित रह रहा है। जब कि कथा अनुष्ठानिक घटनाओं में आज भी अपेक्षाकृत कम आर्थिक आय के बावजूद भी विद्वान ब्राह्मण पुरोहित ही कथावाचक का दायित्व निभाते हैं और केवल ईश्वर का ही कथा एवं गुणगान किया जाता है।
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