Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

तुम हमारे लाल हो

तुम हमारे लाल हो

अरुण दिव्यांश
( तीन वृद्ध पके हुए दाढ़ी मूंछ , धोती गंजी पहने , सिर पर बड़ा सा पगड़ी , तीनों के हाथ में लाठी और संग में चार छोटे बच्चे , जिनमें एक बालकृष्ण के रूप में हाथ में मुरली थामे , दूसरा बलराम कांधे पर हल टाॅंगे हुए , तीसरा सीमा के जवान के रूप में तथा चौथा ग्रामीण रूप में ।
प्रथम वृद्ध :
भारत माता के लाल हम ,
तुम सब हमारे लाल हो ।
हम तो हुए अब तेरे पूर्वज ,
तुम भारत के भाल हो ।।
दूसरा वृद्ध :
तुम्हीं हो भारत के भविष्य ,
तुम्हीं स्वागत के थाल हो ।
छोड़ रहे हैं भारत तुम पर ,
तुम भारत के प्रतिपाल हो ।।
तीसरा वृद्ध :
भारत के तुम हो लाल रत्न ,
मित्रों हेतु तुम एक बाल हो ।
अमृत रूप जो विष फैलाए ,
उसके हेतु तुम तो काल हो ।।
प्रथम बाल ( कृष्ण ) :
माना कि मैं हूॅं नन्हा मुन्ना ,
मत समझो कि मैं नन्हा हूॅं ।
महाभारत रचाया था जिसने ,
अहम तोड़नेवाला कन्हा हूॅं ।।
द्वितीय बाल ( हलधर ) :
हल हमारा स्वयं शक्ति है ,
जिससे खेत जोते किसान ।
खेत से हम फसल उगाकर ,
विश्व को देते हम हैं पिसान ।।
तीसरा बाल ( जवान ) :
कृष्ण व हलधर के कृपा से ,
हम भारत के प्यारे पहरेदार ।
काले नाग दुश्मन हैं हमारे ,
फन कुचलने को हैं तैयार ।।
चौथा बाल :
हम उपस्थित स्वागत में तेरे ,
कर लिए हम विजय माल ।
हर पल तेरे साथ चलें हम ,
हम टीके लगाऍं तेरे भाल ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण ) बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ