सिया सुन्नी के नाम पर, कितने निर्दोषों को मारा,
कितने कुर्द नागरिकों को, मौत के घाट उतारा।पेशावर में मासूम बच्चे, समय से पहले चले गए,
आतंकी पर कुछ कहने से, फिर भी तुमने किया किनारा।
बात- बात पर फतवा जारी, धर्म के ठेकेदार बने,
मौन समर्थन करने वालों, खून से सबके हाथ सने।
आतंकी नहीं सगा किसीका, बस इतना सा ध्यान रहे,
अगली बार बंदूकों की, नाल तुम्हारी और तने।
आस्तीन में साँप पालना, माना खेल निराला है,
जब भी देखा पालन वाला, बना साँप निवाला है।
बचना चाहो दावानल से, चिन्गारी को हवा ना दो,
आतंकी पर मुहँ ना खोला, पीना जहर प्याला है।
आतंकवाद के पालक पोषक, दुनिया को दहलाते हो,
अपने ही पालक साँपों से, डसने पर क्यों चिल्लाते हो?
शुरू किया था खेल तुम्हीं ने, ख़त्म भी तुम पर ही होगा,
बर्बाद करेंगे वही पाक को, जिन पर तुम इठलाते हो।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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