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ओढ़ तिरंगा सो गए

ओढ़ तिरंगा सो गए

ओढ़ तिरंगा जो सो गए, अमर शहीद वो हो गए।
शीश चढ़ाया मातृभूमि को, लाल अमर हो गए।

आजादी के महासमर में, कूद पड़े सेनानी वीर।
शूर वीर पराक्रमी सारे, चल पड़े समर रणबीर।

गोला बारूद से खेले, दुश्मन से लोहा लेते थे।
वतनपरस्ती जोश भरा, समर में आगे रहते थे।

बलिदानी पथ के राही, फांसी तक चढ़ जाते थे।
तलवारों के दम पे वीर, दुश्मन से भीड़ जाते थे।

भारत माता की जयकारों से, वीरों की हुंकारों से।
बैरी दल भी थर थर थर्राता, जय हिंद के नारों से।

सरहद पर सेनानी वीर, गीत वंदे मातरम गाते थे।
देशप्रेम रग रग में भरा, प्राणों की बलि चढ़ाते थे।

प्राण न्योछावर करने वाले, भारती के लाल अमर।
याद करें उनकी कुर्बानी, बढ़ चले बलिदानी डगर।


राष्ट्र प्रेम में ऐसे झूमे नाचे, देशभक्त मतवाले वीर।
ओढ़ तिरंगा सो गए, लाल वतन के रखवाले वीर।


रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान 
रचना स्व रचित व मौलिक है
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