घाटियों में बहती हुई नदी सा जीवन था कवि विशुद्धानंद का:-डा अनिल सुलभ
- जयंती पर चित्रकार-कवि सिद्धेश्वर को दिया गया 'विशुद्धानंद स्मृति-सम्मान', आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन ।
पटना, १४ जनवरी। 'एक नदी मेरा जीवन' का कवि पं विशुद्धानंद का संपूर्ण जीवन पर्वत की घाटियों से होकर अनेक वन-प्रांतों और पत्थरीली भूमि में बहती नदी सा ही था। उनके दर्द भरे गीतों में उनकी जीवनानुभूति, संघर्ष और जिजीविषा को अभिव्यक्ति मिली है। वे गीति-धारा के अत्यंत मर्म-स्पर्शी कवि, फ़िल्मकार, पटकथा-लेखक और पूर्णकालिक कलमजीवी साहित्य-सेवी थे।
यह मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-सह-सम्मान समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि विशुद्धा जी ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य और संस्कृति-कर्म को अर्पित कर दिया था। उन्होंने फ़िल्मों और धारावाहिकों के लिए भी पटकथाएँ लिखीं और गीत भी लिखे। 'पाटलिपुत्र में बदलती हवाएँ, सिहरती धूप' शीर्षक से दूरदर्शन के लिए पाटलिपुत्र की महान विरासत पर लिखी गयी उनकी धारावाहिक, नाट्य-साहित्य और बिहार को प्रदत्त एक बड़ी देन है।
इस अवसर पर चित्रकार-कवि सिद्धेश्वर को 'कवि विशुद्धानंद स्मृति सम्मान' से अलंकृत किया गया। विशुद्धानंद जी द्वारा स्थापित सांस्कृतिक संस्था 'आनन्दाश्रम' के सौजन्य से श्री सिद्धेश्वर को पाँच हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान-राशि के साथ, वंदन-वस्त्र, और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया।
स्व विशुद्धानंद के कवि-पुत्र प्रणव कुमार ने कहा कि मेरे पिता एक स्वाभिमानी कवि और बड़े गीतकार थे। उन्होंने मुझमें सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्कार डाले। उन्होंने साहित्यिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नयन के लिए 'आनन्द आश्रम' की स्थापना की थी, जिसकी सोच यह थी कि गरीब व्यक्तियों और विशेषकर अर्थहीन साहित्यकारों को लाभ पहुँचाया जा सके। उन्होंने जीवन में अनेक पीड़ाएँ झेली। फ़िल्म-वालों ने उनके साथ बड़ा छल किया। आर्थिक-संकट झेलते हुए भी उन्होंने अपने सृजन को जारी रखा। उनकी अनेक अप्रकाशित कृतियों का प्रकाशन 'आनन्दाश्रम' के द्वारा किया गया है।
उनके दूसरे पुत्र प्रवीर पाण्डेय ने उनकी प्रसिद्ध रचना अंगूठे की रेखाओं पर कालिख नहीं लगाना साथी/ अक्षर से अनजाना रहकर, मत तुम उमर विताना साथी" का सस्वर पाठ किया। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, सुप्रसिद्ध साहित्यकार रमेश पाठक, डा रत्नेश्वर सिंह, डा ऋचा वर्मा, प्रो सुशील कुमार झा तथा ई अशोक कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। सम्मानित कवि सिद्धेश्वर, मधुरेश नारायण, आराधना प्रसाद, ओम् प्रकाश पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी, डा मीना कुमारी परिहार, ऋचा वर्मा, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, शमा कौसर शमा, श्याम बिहारी प्रभाकर, प्रभात धवन, वीणा अम्बष्ठ, लता प्रासर, सदानन्द प्रसाद, नीता सहाय, वीणा गुप्ता, सुनीता रंजन, डा आर प्रवेश, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, राज प्रिया रानी, डा शमा नासमीन नाजां, विशाल कुमार वैभव आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं का सुमधुर पाठकर काव्यांजलि प्रदान की। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, प्रवीर कुमार पंकज, डा आशुतोष कुमार, ललिता पाण्डेय, कहकशां आलम, कृष्ण कुमार अम्बष्ठ , अमीर नाथ शर्मा, रीतेश सिंह राठौर समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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