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राजनीतिक सोच का प्रक्षालन

राजनीतिक सोच का प्रक्षालन

डॉ विवेकानंद मिश्र,

राजनीतिक सोच का प्रक्षालन


लटक नीति करने वालों को,
राजनीति का बोध कहां है।
स्वहित साधना में विभोर को,
परहित का संबोध कहां है।।


राजनीति के मूल्यों को
धुंधलाने की यह कुचेष्टिता।
बेबुनियाद भ्रामक बयान से
राष्ट्र-अहित की यह है धृष्टता ।।


अपने सिद्धांत, उद्देश्य छोड़,
विध्वंसक विचारों को जोड़,
जड़-मूल से रहे उखड़
इनकी बुद्धि का नहीं तोड़।।

शीघ्र सत्ता सुख पाने की,
गजब व्यग्रता दिखती है।
पर किए गए अपने कार्यों से,
बुद्धि तनिक न सीखती है।।




गर यही सिलसिला चला विवेक
तो दुर्भाग्य बता किसका होगा।
राजनीति की प्रासंगिकता का
सौभाग्य बता किसका होगा।।


लक्ष्य विहीन जीवन जिसका
तो कैसे सुखमयता होगी।
रंगे सियार साथ बहुतेरे।
फिर कैसे तेरी जय होगी।।




डॉ विवेकानंद मिश्र,
डॉ विवेकानंद पथ गोल बगीचा,गया।
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