दर्द दिल की कहूँ तो हो आंखे सजल,
मेरी खामोश ख्वाहिश है खालिस गजल ।ऑंसूओं में पली, आँसूओं से सजी ,
अन्तर्मन की व्यथा ही है मेरी गजल ।
ख्वाब देखा था कब ऐसी जिल्लत भरी,
मैने सोंचा न था मेरी इल्लत गजल ।
अब तो तन्हाई किश्ती है मेरे लिए ,
कसम से, इबादत ही मेरी गजल ।
इस कदर दिल के कोने से कातिल कसक,
कयामत मचाएगी खालिस गजल ।
मैं ने कीमत कफन का है पहले दिया,
कर्ज लेकर न जाएगी मेरी गजल)
क्यों जरूरत पड़ी ऐसे इश्तहार की,
ये सब कुछ बताती है मेरी गजल ।
क्यों समझते नहीं लोग समझाते सब,
कैसे समझाऊं उनको मैं अपनी गजल ।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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