आओ चलो चलें प्रयाग
जाग गोलु जाग भोलू ,चिंकी जाग पिंकी जाग ।
आई है गाड़ी हमें लेने ,
आओ चलो चलें प्रयाग ।।
प्रयाग में खूब लगा मेला ,
भिन्न भिन्न झूले व खेला ।
चेला बना पड़ा अब गुरु ,
गुरु बना पड़ा अब चेला ।।
कहीं दिखेगा भालू खेल ,
कहीं मिले बच्चों का रेल ।
नित्य बरसे कोटि संख्या ,
मेले में खूब है ठेलमठेल ।।
बारह बरस पे यह आया ,
रोम रोम में हर्ष दौड़ाया ।
पावन संगम कर स्नान ,
साधु संत का दर्शन पाया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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