हिंदी के उत्संग में,भाषाई सत्संग
पुनीत पावन ममत्व आभा,विश्व धरा अप्रतिम शान ।
हिंद भाषा परम पदवी,
नित्य अभिरक्षक स्वाभिमान ।
सहज सरल शब्द अर्थ भाव,
अंतर बिंदु चिन्मयता उमंग ।
हिंदी के उत्संग में,भाषाई सत्संग ।।
शिक्षण अधिगम सुबोधन,
संवाद संप्रेषण अनूप माध्य ।
चितवन अविरल स्नेह धार,
स्तुति व्यंजना सदृश आराध्य ।
स्नेह प्रेम मनोरम ज्योति ,
रज रज बिंब अपनत्व तरंग ।
हिंदी के उत्संग में,भाषाई सत्संग ।।
अंतःकरण नव रस छंद ,
देशज विदेशज निमज्जित ।
समता ममता भाव तरंगिणी,
सर्व भाषा प्रीत सुसज्जित ।
मधुर चारु नवगीता उपमा,
परिशुद्ध यौवन अंग प्रत्यंग ।
हिंदी के उत्संग में,भाषाई सत्संग ।।
बिंदी शोभा विश्व चंद्रिका,
मुख मंडल अथाह कांति ।
सर्व धर्म समभाव नायक ,
नित अग्र कदम प्रेम शांति ।
मानवता उत्थान शीर्ष ध्येय ,
कामना जन हिलोर राग रंग ।
हिंदी के उत्संग में,भाषाई सत्संग ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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