महाकुंभ के मेले में यह ,
धर्म पताका लहरा रहा है ।उमड़ पड़ी भक्ति की धारा ,
उर में आस्था गहरा रहा है ।।
छ: वर्ष पर अर्द्धकुंभ होता ,
बारह वर्ष पे महाकुंभ आया ।
उमड़ पड़ा भक्तों का सैलाब ,
संत सनातन विश्वास बढ़ाया ।।
योगी संन्यासी संत महात्मा ,
स्वयं सेवी संस्था पुण्यात्मा ।
पाप कटाने औ पुण्य बढ़ाने ,
आते हैं प्रिय भक्त धर्मात्मा ।।
महाकुंभ का यह आयोजन ,
निर्मल पावन धर्म का वासी ।
जन जन आस्था में विह्वल ,
न छिड़े इसमें जंग सियासी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार
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