अँधेरे से नहा ,सूरज आएगा तब देखना ।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
अँधेरे से नहा ,सूरज आएगा तब देखना ।
रेशमी आलोक छत पर आएगा तब देखना ।।
जब दिशाओं में सफेदी का असर होने लगे।
और पाखी - चोंच से वंशी बजे तब देखना ।।
ताल - जल पर कमल मुस्काने लगेंगे आप ही।
सौम्य सुषमा खिल खिलाने लगेगी तब देखना।।
रास्ते ,पग डंडियाँ सब प्रतीक्षा रत रहेंगी।
अल्प वसनी देह चलने लगेंगी तब देखना।।
बज उठेंगे ढोर कंठी लौह निर्मित घंटियाँ।
तान विरहा या प्रभाती छिड़ेगा तब देखना।।
गाँव की मिट्टी तनिक में ही धमक उठती मगर।
रेशमी आलोक छत पर आएगा तब देखना ।।
जब दिशाओं में सफेदी का असर होने लगे।
और पाखी - चोंच से वंशी बजे तब देखना ।।
ताल - जल पर कमल मुस्काने लगेंगे आप ही।
सौम्य सुषमा खिल खिलाने लगेगी तब देखना।।
रास्ते ,पग डंडियाँ सब प्रतीक्षा रत रहेंगी।
अल्प वसनी देह चलने लगेंगी तब देखना।।
बज उठेंगे ढोर कंठी लौह निर्मित घंटियाँ।
तान विरहा या प्रभाती छिड़ेगा तब देखना।।
गाँव की मिट्टी तनिक में ही धमक उठती मगर।
शहर की संजीदगी का स्वर मिले तब देखना।।
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