Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

नये रिश्ते

नये रिश्ते

सुरेन्द्र कुमार रंजन

रिश्ते-नातों की मेरी कहानी अजब,
नाते टूटे भी हैं, रिश्ते बदले हैं सब ।
दोस्त देखे बहुत, रिश्ते-नातों को भी,
अब तो रिश्ते नये, दुश्मनी की तलब ।


पानी सर से जब ऊपर बहने लगे,
भूल जाता मनुष्य रिश्ते-नातों को तब ।
दोस्ती के लिए मैं बहा दूँ लहू,
दुश्मनी से भी पीछे मैं हटता हूँ कब ।


समझता था जिसको मैं सागर हृदय,
वो भी निकला कुएँ का मेंढक बेढब ।
प्राण पन से निभाता था जिसको कभी,
आज खण्डित नये रिश्तों का है सबब।


पहले खुद को शिकारी समझते थे जो,
खुद शिकार बनकर सिसकते हैं अब।

बढ़-चढ़कर निबाहूँगा रिश्ते नये, चाहे करना पड़े मुझको कुछ भी, ऐ रब।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ