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रोजगार

रोजगार

मानव यदि जानवर होता तो घासें चरकर जीवन बीता लेता , पक्षी होता तो कीड़े मकोड़े चुगकर या दाने चुगकर जीवन बीता लेता , लेकिन मानव के साथ यही समस्या है कि वह ऐसा नहीं कर सकता , क्योंकि मानव एक समझदार अर्थात बुद्धिजीवी प्राणी है । उसे अपने पेट से लेकर अपने परिवार , पास पड़ोस , मुहल्ले, समाज , पशु , पक्षी सबकी चिंता रहती है । उसे अपने अलावे बाल बच्चों तथा अपने माता-पिता की परवरिश भी करनी होती है । फलत: मानव को अपनी और परिवार की परवरिश हेतु आजीविका अर्थात रोजगार की तलाश में लग जाता है और वह नौकरी , व्यवसाय या मजदूरी कर सबका परवरिश करने लगता है ।
रोजगार की तलाश भी इतना सहज नहीं होता , जिसे वह सहजता से प्राप्त कर ले । प्राईवेट नौकरी भी पहले तो मिलती नहीं और मिलती है , तो पारिश्रमिक कम शोषण अधिक मिलता है , व्यवसाय हेतु पूॅ़ंजी कहाॅं है , बैंक से ऋण लेते हैं तो बीस तीस प्रतिशत रिश्वत देकर ऋण लेकर और पूरे का समय समय से व्याज सहित भरपाई कहाॅं से होगी , वह भी कोई जरूरी नहीं कि व्यवसाय में लाभ ही हो । यदि नुकसान हुआ तो वापसी कहाॅं से होगी और वापसी नहीं तो अपना घर कौन नोचवाएगा , अपनी बेइज्जती कौन कराएगा ?
अतः रोजगार आज भी मानव के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है , जिसके कारण मानव सीधे भूखमरी के कगार पर पहुॅंच जाता है और जीवन यापन भी बहुत बड़ी समस्या बन जाती है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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