शंख का आध्यात्मिक और चिकित्सकीय महत्त्व
सुरेन्द्र कुमार रंजन
पूजा-पाठ, हवन, विवाह, राज्याभिषेक, उत्सव, मंगल ध्वनि, जन्मोत्सव, विजयोत्सव आदि के समय में शुभ और अनिवार्य माना जाने वाला समुद्री रत्न 'शंख' एक बहुमूल्य रत्न है। सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण माना जाने वाला शंख हिन्दुओं की एक अमूल्य निधि है। हिन्दुओं के घर में पूजा होती है। इसकी उपयोगिता धार्मिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है बल्कि सामाजिक उत्सवों में भी इसका उपयोग श्रृंगार के रूप में किया जाता है। इससे निर्मित गहनों का इस्तेमाल महिलाएं तीज त्योहारों में करती हैं। इतना ही नहीं इसके नाद (ध्वनि) से कई लाइलाज बीमारियों में भी राहत मिलती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शंख एक बेशकीमती और उपयोगी समुद्री रत्न है जो सिर्फ आध्यात्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से ही उपयोगी नहीं बल्कि चिकित्सकीय दृष्टिकोण से भी चमत्कारिक है।
शंख को शुभ इसलिए माना गया है कि महालक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों में इसे धारण करते हैं। पूजा-पाठ में तीन बार शंख बजाने से वातावरण पवित्र हो जाता है और दरिद्रता भाग जाती है। जहां तक इसकी आवाज पहुंचती है वहां तक के लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं। शिवलिंग और शालीग्राम की तरह ही इसके भी कई प्रकार होते हैं। सभी तरह के शंखों का महत्त्व और कार्य अलग-अलग होते हैं। समुद्र मंथन के समय देव-दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई थी जिसके आठवें रत्न के रूप में शंख का जन्म हुआ।
शंख नाद (ध्वनि) का प्रतीक है :-
शंख की ध्वनि शुभ मानी गई है। प्रत्येक शंख का गुण अलग-अलग माना गया है। कोई शंख विजय दिलाता है तो कोई धन और समृद्धि। किसी शंख में सुख और शांति प्रदान करने की शक्ति है तो किसी में यश और कीर्ति। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चन्द्रमा और सूर्य के समान ही देव स्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है। आपके हाथों की अंगुलियों के प्रथम पोर पर भी शंखाकृति बनी होती है और अंगुलियों के नीचे भी।
द्विधास दक्षिणावर्ति र्वामावत्तिवस्तु भेदतः
दक्षिणावर्त शंकरवस्तु पुण्य योगा दवाप्यते
यदगृहे तिष्ठेति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्
हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं लेकिन इनमें तीन प्रमुख हैं- वामवर्ती शंख, दक्षिणवर्ती शंख तथा गणेश शंख या मध्यवर्ती शंख। इन तीनों ही प्रकार के शंखों में कई तो चमत्कारी हैं, तो कई दुर्लभ और कई सुलभ हैं।
दक्षिणवर्ती शंख :-
जिस शंख का पेट दाहिनी ओर खुला होता है उसे दक्षिणवर्ती शंख कहते हैं। इसे देव स्वरूप माना गया है। इसके पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। तांत्रिक दृष्टिकोण से भी इसे काफी
महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस शंख को बजाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इसे पूजा स्थल पर रखकर नियमित विधिवत् पूजा की जाय तो घर में धन, वैभव और ऐश्वर्य की कमी नहीं रहती है। घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। इस शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाय और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पीया जाय तो पेट के रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यह शंख कीमती और दुर्लभ है।
दक्षिणवर्ती शंख के प्रकार :-
दक्षिणवर्ती शंख दो प्रकार के होते हैं- नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो वह मादा शंख होता है।
वामवर्ती शंख :-
वामवर्ती शंख का पेट बाई ओर खुला होता है। बजाने के लिए इसमें एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं। यह शंख घर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालने में सक्षम है। इसको घर में रखने मात्र से ही आसपास का वातावरण शुद्ध होता रहता है। यह अधिक मात्रा में पाया जाता है।
मध्यवर्ती शंख या गणेश शंख :-
मध्यवर्ती शंख या गणेश शंख की आकृति गणेश जी की तरह होती है इसलिए इसे गणेश शंख कहा जाता है। समुद्र मंथन के दौरान आठवें रत्न के रूप में सर्वप्रथम गणेश शंख की उत्पत्ति हुई थी। इस शंख की पूजा जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति के लिए किया जाता है। इसके पूजन से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। यह शंख दरिद्रनाशक और धन प्राप्ति का कारक है। यह दुर्लभ है।
पाञ्चजन्य शंख :-
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो धनञ्जयः। पौण्ड्र दर्ध्मों महशंखं भीमकर्मा वृकोदरः ।।
भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। कहते हैं कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में कछवा एवं बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था, जहाँ से यह चोरी हो गया। यहाँ हिन्दू धर्म से जुड़ी कई बेशकीमती वस्तुएं थी। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदिबद्री में सुरक्षित रखा है।
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय एवं यश का प्रतीक माना जाता है।
देवदत्त शंख :-
यह शंख महाभारत में अर्जुन के पास था। वरुणदेव ने उन्हें यह उपहार में दिया था। माना जाता है कि इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़ लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
महालक्ष्मी शंख :-
इस शंख को प्राकृतिक रूप से निर्मित श्रीयंत्र भी कहा जाता है. इसीलिए इसका नाम महालक्ष्मी शंख है। इस शंख की जिस घर में पूजा-अर्चना होती है, वहां देवी लक्ष्मी का स्वयं वास होता है। किसी भी शंख की पूजा इस मंत्र से करना चाहिए-
त्वंपुरा सागरोत्पन्न विष्णुनाविधृतः करे
देवैश्चपूजितः सर्वथौ पाञ्चयन्य मनोस्तुते।
पौण्ड्र शंख :-
पौंड्रिक या पौण्ड्र शंख महाभारत में भीष्म के पास था। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो उसे यह पौण्ड्र शंख रखना चाहिए। इसे घर में रखे जाने से मनोबल बढ़ता है। अधिकतर इसका उपयोग विद्यार्थी के लिए उत्तम माना गया है।
कामधेनु शंख :-
यह शंख भी मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं ।एक गोमती शंख और दूसरा कामधेनु शंख। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि कामधेनु शंख की पूजा-अर्चना करने से तर्कशक्ति प्रबल होती है और सभी तरह की मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती है। महर्षि पुलस्त्य ने लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस शंख का उपयोग किया था। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार इसके प्रयोग द्वारा धन और समृद्धि स्थायी रूप से बढ़ाई जा सकती है।
कौरी (कौड़ी) शंख :-
कौरी (कौडी) शंख अत्यंत ही दुर्लभ है। माना जाता है कि यह जिसके घर में होता है उसका भाग्य खुल जाता है और समृद्धि बढ़ती जाती है। प्राचीन काल से ही इस शंख का उपयोग गहने, मुद्रा और पासे बनाने में किया जाता रहा है।
हीरा शंख :-
इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते हैं। यह दक्षिणवर्ती शंख की तरह खुलता है। यह पहाड़ों में पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है। इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते हैं। यह बहुत ही बहुमूल्य माना गया है।
मोती शंख :-
घर में सुख और शांति के लिए मोती शंख स्थापित किया जाता है। मोती शंख हृदय रोगनाशक भी माना गया है। मोती शंख को सफेद कपड़े पर विराजमान करके पूजा घर में स्थापित किया जा सकता है। इसकी पूजा प्रत्येक दिन किया जा सकता है।
यदि मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाय तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है।
यदि मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज "ॐ श्री महालक्ष्मै नमः " मंत्र 11 बार बोलकर 1-1 चावल (साबुत) का दाना शंख में भरते हैं। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।
अनंत विजय शंख :-
युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंत विजय था। अनंत-विजय अर्थात् अंतहीन जीत। इस शंख के होने पर हर कार्य में विजय मिलती है। प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए इसकी पूजा करनी चाहिए। इस शंख का मिलना दुर्लभ है।
मणिपुष्पक और सुघोषमणि शंख :-
नकुल के पास सुघोषमणि और सहदेव के पास मणिपुष्पक शंख था। मणिपुष्पक शंख की पूजा-अर्चना से यश, कीर्ति, मान-सम्मान प्राप्त होता है। उच्च पद की प्राप्ति के लिए भी इसका पूजन उत्तम है।
अन्नपूर्णा शंख :-
अन्नपूर्णा का अर्थ होता है अन्न की पूर्ति करने वाला या वाली। इस शंख को रखने से हमेशा बरकत बनी रहती है। यह धन और समृद्धि बढ़ाता है।
वीणा शंख :-
विद्या की देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है। यह शंख वीणा की आकृति का होता है इसलिए इसे वीणा शंख कहा जाता है। मान्यता है कि इसके जल पीने से मंदबुद्धि व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। अगर वाणी में कोई दोष है या बोल नहीं पाते हैं तो इस शंख का जल पीने के साथ-साथ इसे बजाएं भी।
ऐरावत शंख :-
इन्द्रदेव के हाथी का नाम ऐरावत है। यह शंख उसी के समान दिखाई देता है इसलिए इसका नाम ऐरावत शंख है। यह शंख मूलतः सिद्धि और साधना प्राप्ति के लिए माना गया है।
विष्णु शंख :-
इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में शिथिलता के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है। प्रतिदिन इस शंख के जल का सेवन करने से कई तरह के असाध्य रोग भी मिट जाते हैं।
गरुड़ शंख :-
गरुड़ की मुखाकृति के समान होने के कारण इसे गरुड़ शंख कहा गया है। यह शंख भी सुख और समृद्धि देने वाला है।
सेहत में फायदेमंद शंख
शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। गौरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणवर्ती शंख को आर्युवर्द्धक और
समृद्धिदायक कहा गया है।
भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग क्यों नहीं?
भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता है। इन्हें शंख से न तो जल दिया जाता है और न शिव की पूजा में शंख बजाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। एक बार राधा स्वर्गलोक से कहीं बाहर गई थी। उस समय श्रीकृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश राधा वहां आ गई। विरजा के साथ कृष्ण को देखकर राधा क्रोधित हो गई और कृष्ण एवं विरजा को भला बुरा कहने लगी। लज्जावश विरजा नदी बनकर बहने लगी।
कृष्ण के प्रति राधा के क्रोधपूर्ण शब्दों को सुनकर कृष्ण का मित्र सुदामा आवेश में आ गया। सुदामा कृष्ण का पक्ष लेते हुए राधा से आवेशपूर्ण शब्दों में बाते करने लगा। सुदामा के इस व्यवहार को देखकर राधा नाराज हो गई। राधा ने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया। क्रोध में भरे सुदामा ने भी हित अहित का विचार किए बिना राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। राधा के शाप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना।
शिवपुराण में भी दंभ के पुत्र शंखचूर का उल्लेख मिलता है। यह अपने बल के मद में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। साधु-संतों को सताने लगा। इससे नाराज होकर भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया। शंखचूर विष्णु और देवी लक्ष्मी का भक्त था। भगवान विष्णु एवं अन्य देवी-देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है। लेकिन शिव जी ने शंखचूर का वध किया था। इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है।
हिन्दू धर्म में शंख का विशेष महत्त्व बताया गया है। घर-घर में शंख को पूजास्थल में रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। शंख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। शंख का वास्तु में खास महत्त्व है। घर में शंख को रखने और प्रतिदिन उसे बजाने से आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है। विज्ञान में शंख की ध्वनि को बेहद लाभदायी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि रोजाना पूजा के बाद शंख को बजाने से आस-पास के वैक्टीरिया का नाश होता है और आपके गले का भी व्यायाम होता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं घर में शंख के कुछ मामूली से उपाय करके आप अपने ग्रहों को भी शांत कर सकते हैं।
'शंख के द्वारा पूजा करने से निम्नांकित ग्रहों की शांति'
सोमवार को शंख का उपाय :-
सोमवार को शंख में दूध भरकर शिवजी को चढ़ाने से चन्द्रमा मजबूत होता है और उसके अनुकूल फल आपको प्राप्त होते हैं। साथ ही साथ भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है।
मंगलवार को शंख का उपाय :-
मंगलवार के दिन शंख का उपाय करने से मंगल के प्रभाव दूर होते हैं और हनुमान जी की असीम कृपा प्राप्त होती है। मंगलवार के दिन शंख बजाकर सुंदरकांड का पाठ करने से मंगल ग्रह मजबूत होते हैं।
बुधवार को शंख का उपाय :-
बुधवार को शंख का उपाय बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए उपयोगी माना जाता है। बुधवार के दिन शालीग्राम का अभिषेक करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। इसके लिए शंख में जल और तुलसीदल डालकर अभिषेक करने से बुध ग्रह मजबूत होता है। बुध ग्रह के शुभ प्रभाव से जातक को कैरियर के मामले में सफलता प्राप्त होती है। बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित होता है। घर में शंख की ध्वनि करने से गणपति जी भी प्रसन्न होते हैं।
शंख से गुरु की पूजा :-
गुरुवार की पूजा में शंख का प्रयोग करना सबसे उत्तम माना जाता है। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को शंख में जल भरकर जलाभिषेक करने से आपको भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और साथ ही गुरु भी बलवान होता है। गुरुवार के दिन शंख को केसर से तिलक करके उसकी पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको कैरियर में सफलता प्राप्त होती है।
शुक्रवार को शंख का उपाय :-
शंख को माँ लक्ष्मी का अतिप्रिय माना जाता है और शुक्रवार के दिन को माँ लक्ष्मी का ही दिन माना जाता है। माँ लक्ष्मी की शाम की पूजा में शंख का प्रयोग करना श्रेष्ठ माना जाता है। इसके साथ ही शुक्रवार के दिन शंख को सफेद कपड़े में लपेटकर रखने से शुक्र ग्रह मजबूत होता है।
सूर्यदेव को ऐसे करें प्रसन्न
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शंख का प्रयोग करने से सूर्यदेव को भी प्रसन्न किया जा सकता है। रविवार के दिन सूर्य को अर्घ्य देने के लिए शंख में जल भरकर सूर्यदेव को चढ़ाने से वे अतिप्रसन्न होते हैं। ऐसा करने से आपको निरोगी काया प्राप्त होते हैं।
घर मेंशंख रखने और बजाने के 13 (तेरह) फायदे :-
पूजा-पाठ में शंख बजाने का प्रचलन युगों-युगों से चला आ रहा है। देश के कई भागों में लोग शंख को पूजा घर में रखते हैं और इसे नियमित रूप से बजाते हैं। ऐसे में यह उत्सुकता एकदम स्वाभाविक है कि शंख केवल पूजा-अर्चना में ही उपयोगी है या इसका सीधे तौर पर भी कुछ लाभ है।
दरअसल, सनातन धर्म की कई ऐसी बाते हैं, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद हैं। शंख रखने ,बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते हैं। कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े हैं। पूजा में शंख बजाने और रखने से निम्नलिखित फायदे हैं :-
1.) ऐसी मान्यता है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। धार्मिक ग्रंथों में शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है, क्योंकि लक्ष्मी की तरह शंख भी सागर से ही उत्पन्न हुआ है। शंख की गिनती समुद्र मंथन से निकले चौदह रत्नों में होती है।
2.) शंख को इसलिए भी शुभ माना गया है, क्योंकि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में धारण करते हैं।
3.) पूजा-पाठ में शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है। जहां तक इसकी आवाज जाती है, वहां तक के लोगों के मन में सकारात्मक विचार पैदा होते हैं।
4 ) शंख के जल से शिव को छोड़कर अन्य देवताओं का जलाभिषेक करने से ये प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हमें प्राप्त होती है।
5.) ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि शंख में जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है।
6.) शंख की आवाज लोगों को पूजा-पाठ करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती हैं। इससे दुष्ट आत्माएँ पास नहीं फटकती है।
7.) वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण में मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई जांच से इस तरह के नतीजे मिले हैं।
8) आयुर्वेद के मुताबिक शंखोंदक के भस्म के उपयोग से पेट की बीमारियां, पथरी, पीलिया आदि कई तरह की बीमारियाँ दूर होती हैं। हालांकि इसका उपयोग विशेषज्ञ वैद्य की सलाह से किया जाना चाहिए।
9.) शंख बजाने से फेफड़े का व्यायाम होता है। पुराणों में जिक्र मिलता है कि अगर श्वास का रोगी नियमित तौर पर शंख बजाए, तो वह बीमारी से मुक्त हो सकता है।
10.) शंख में रखे पानी का सेवन करने से हड्डियां मजबूत होती है। यह दाँतों के लिए भी लाभदायक है। शंख में कैल्शियम, फास्फोरस व गंधक के गुण होने की वजह से यह फायदेमंद हैं।
11.) वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख में ऐसे कई गुण होते हैं जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। शंख की आवाज से सोई हुई भूमि जाग्रत होकर शुभ फल देती है।
12.) शंखनाद से शरीर के सभी अंग प्रभावित होते हैं। इससे गैस, कब्ज, श्वांस, मोटापा, कान,मस्तिष्क, मधुमेह, रक्तचाप, मानसिक तनाव, क्षयरोग, मूत्र संबंधी रोग, नेत्र संबंधी आदि रोगों में लाभ मिलता है।
13.) मान्यता है कि प्रसव वेदना से पीड़ित महिलाओं को शंख में भरकर जल एवं दुग्धपान कराने से बच्चे सुंदर और स्वस्थ होते हैं ।इसमें रखा जल या दूध अमृततुल्य होता है।
शंख आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं वरन् चिकित्सकीय दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। इसके प्रयोग से ना सिर्फ मानसिक शांति मिलती है बल्कि शारीरिक सुख भी प्राप्त होता है। इसके प्रयोग से आर्थिक विपन्नता ही नहीं भागती बल्कि आर्थिक सम्पन्नता का भी आगमन होता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है, शंख हमारे जीवन के लिए वरदान है।
सुरेन्द्र कुमार रंजन (मातृ उद्बोधन आध्यात्मिक केन्द्र के सौजन्य से )
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