मैं अकेला इक काफिला हूं
मैं अकेला इक काफिला हूं, चलता जाता मौज में।गीत रचता नित नया, काव्य शब्द चुनता ओज के।
वीरों महावीरों रणवीरों की, तरुणाई जगाने चला हूं।
राष्ट्रधारा में देशभक्ति की, वीर गाथा सुनाने चला हूं।
मैं अकेला इक काफिला हूं
हल्दीघाटी हुंकार लिखूं, राणा का स्वाभिमान लिखूं।
पद्मिनी की जोहर गाथा, पन्ना का बलिदान लिखूं।
वीर वसुंधरा भारती का, यश गान रचाने चला हूं।
बलिदानों की परिपाटी, घट घट में सजाने चला हूं।
मैं अकेला इक काफिला हूं
गोला बारूद रणभेरी की, भालों की तलवारों की।
कूद पड़े महासमर में, ललकार वीर किरदारों की।
महा योद्धा महारथियों की, मैं हूंकार सुनाने चला हूं।
गांडीव उठाया अर्जुन ने, मैं टंकार बजाने चला हूं।
मैं अकेला इक काफिला हूं
धनुर्धारी श्री रामचंद्र जी, वीर प्रताप शिवाजी का।
चक्र सुदर्शन धारी माधव, भगत बोस नेताजी का।
रण कौशल शूरमां के, शब्द बाण सजाने चला हूं।
देश के जवानों जागो, रणधीरों को जगाने चला हूं।
मैं अकेला इक काफिला हूं
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है।
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