मुहिम खुदाई
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
आदमीयत का तरन्नुम खो गया।
ग़ुल में खुदाई के, गुम हो गया।
खुदाई से बरतर न कोई सवाब,
खोदता था वही जन्नत को गया।
बेकार रो रहे हो किस्मत को,गर
बौद्ध संघाराम मन्दिर हो गया।
मुकद्दर का सिकंदर है शख्स वो,
समंदर ही जिससे वतन हो गया।
खोदना ही है खुदाई खुदा की,
जो न खोदे तो धरम ही खो गया।
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
आदमीयत का तरन्नुम खो गया।
ग़ुल में खुदाई के, गुम हो गया।
खुदाई से बरतर न कोई सवाब,
खोदता था वही जन्नत को गया।
बेकार रो रहे हो किस्मत को,गर
बौद्ध संघाराम मन्दिर हो गया।
मुकद्दर का सिकंदर है शख्स वो,
समंदर ही जिससे वतन हो गया।
खोदना ही है खुदाई खुदा की,
जो न खोदे तो धरम ही खो गया।
(सवाब =पुण्य; खुदाई खुदा की,यहाँ 'खुदाई '=खुदा यानी ईश्वर की कृपा। ग़ुल=शोर)।
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