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खामोश रहता हूँ, मगर गूँगा नही हूँ,

खामोश रहता हूँ, मगर गूँगा नही हूँ,

अकेला रहता हूँ, मगर तन्हा नही हूँ।
अथाह जल है समन्दर में तजुर्बों का,
भरा है खार जीवन का, खारा नही हूँ।
हूँ दरख्त बूढा, अब फल दे नही सकता,
मगर छाया- ईंधन देता, ठूँठ नही हूँ।
माना कि बच्चे व्यस्त हैं, निज जीवन में,
सीखता हूँ आज भी, खाली नही हूँ।
हो गया हूँ बूढा उम्र से, यह तो सच है,
ढल रहा शरीर, पर मन से थका नही हूँ। 
अ कीर्तिवर्धन
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