कश्यप ऋषि के साथ कश्मीर को जोड़ने का गृहमंत्री का संकेत
डॉ राकेश कुमार आर्य
भारत के गृहमंत्री अमित शाह जी ने पिछले दिनों कश्मीर के इतिहास से जुड़ी एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर संकेत दिया कि कश्मीर को कश्यप ऋषि के साथ जोड़ा जा सकता है। उन्होंने अपने संबोधन में यह भी संकेत दिया कि जो कुछ हमने खोया था, उसे प्राप्त करने का समय अब बहुत निकट है। उनका संकेत पाक अधिकृत कश्मीर की ओर था। यदि अमित शाह जी कश्मीर को कश्यप ऋषि के साथ जोड़ने का संकेत देकर यह कह रहे हैं कि इसका नाम कश्यप ऋषि के नाम पर किया जाएगा तो निश्चय ही यह उनका एक और क्रांतिकारी कदम होगा। जिसका देश के सभी राष्ट्रवादी जनों की ओर से जोरदार अभिनंदन किया जाना निश्चित है।
वास्तव में ऋषि कश्यप और कश्मीर का बहुत गहरा संबंध है। पौराणिक साक्ष्यों व प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि ऋषि कश्यप के मर्ग अर्थात घर के होने के कारण प्राचीन काल में कश्मीर को कश्यप मर्ग कहा जाता था । जो कालांतर में कश्मीर के रूप में रूढ़ हो गया। कश्यप ऋषि की महानता और विद्वत्ता का उस समय का सारा संसार लोहा मानता था । उनके नाम का यश सारे संसार में फैला हुआ था। जब विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की संस्कृति का विनाश करना आरंभ किया तो उन्होंने धीरे-धीरे हमें अपनी जड़ों से काट दिया । जिसका परिणाम यह हुआ कि आज हम अपने कश्यप ऋषि जैसे महापुरुष के विषय में बहुत कम जानते हैं। इसी के चलते भारतवर्ष में ही बहुत कम लोग जानते हैं कि जिसे आज कैस्पियन सागर कहते हैं यह कभी कश्यप सागर हुआ करता था। जैसे हिंदी में हम जिन्हें यूरोपीय देश कहते हैं, अंग्रेजी में हम उन्हें यूरोपियन कंट्रीज कहते हैं, उसी प्रकार कश्यप के नाम से प्रसिद्ध सागर को काश्यपीय सागर कहे जाने की परंपरा प्रचलित हुई। जिसे इंग्लिश में कैस्पियन कहकर पुकारा गया। इसका अभिप्राय है कि कश्मीर और कश्यप की सुगंध कभी संसार के बहुत बड़े क्षेत्र में फैली हुई थी।
जम्मू और कश्मीर शब्दों का जोड़ा भी अत्यंत प्राचीन काल से है। जिसे आज हम जम्मू क्षेत्र कहते हैं, यह कभी जंबूद्वीप हुआ करता था। संपूर्ण यूरोप और एशिया का नाम जंबूद्वीप था । आज जिस जम्मू को हम देखते हैं वह समझो यूरोप और एशिया नाम के दो महासागरों की एक छोटी सी तलैया है। माना कि यह एक तलैया है , परन्तु यह इतना तो स्पष्ट कर ही देती है कि भारत का अतीत कितना उज्जवल था ? कितना स्वर्णिम था ? कितना गौरवपूर्ण था ? उस समय के जंबूद्वीप में कैस्पियन सागर हुआ करता था। उसका जंबूद्वीप के साथ अस्तित्व मिलाकर देखने से पता चलता है कि जम्मू कश्मीर का क्षेत्र कितना विस्तृत था अर्थात कहां से गिरते - गिरते कहां आ गए हैं ? यद्यपि इस बात का दु:ख केवल उन्हीं को हो सकता है, जो इसके इतिहास के सच को जानते हैं। जिनको इतिहास बोध ही नहीं है वे तो जम्मू कश्मीर को नेहरू की भांति धरती का एक टुकड़ा मात्रा मानते हैं।
इस विस्तृत भू-भाग पर कश्यप ऋषि के वंश का शासन चलता था। राजा शिव का शासन भी कभी यहां रहा है। जिन्होंने लोक कल्याण की भावना से प्रेरित होकर शासन किया। उनकी महानता और कर्तव्यपरायणता के कारण ही लोग उन्हें आज तक भगवान के रूप में पूजते हैं। शिव का शाब्दिक अर्थ ही कल्याणकारी है । इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि जिस शिव नाम के राजा को हम भगवान के रूप में पूजते हैं उसका शासन शिव अर्थात कल्याणकारी था। आज के राजनीतिक मनीषी जिस लोक कल्याणकारी शासन की बात करते हैं वह भारत के मूल में समाविष्ट है। भारत के राजनीतिक चिंतन का प्रेरणा स्रोत शिव है। शिव नाम की शक्ति है अर्थात कल्याणकारी राज्य का संकल्प है। हम सत्यम शिवम सुंदरम के उपासक ऐसे ही नहीं बन गए हैं? हमने सत्य ( सत्यम) को कल्याणकारी स्वरूप ( शिवम ) में सुंदरता के साथ ( सुंदरम ) प्रस्तुत करना और आत्मसात करना जाना है। इसलिए ही हम इनकी उपासना करते हैं।
स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारत के स्वर्णिम इतिहास के साथ एकाकार करती हुई जम्मू कश्मीर की प्रस्तुति लोगों के सामने आनी अपेक्षित थी, परंतु तत्कालीन नेतृत्व की नीतियों के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। जानबूझकर कश्मीर को मुगलों की सैरगाह घोषित कर दिया गया। भारत के ऋषियों की तप:स्थली को व्यभिचारी लोगों के व्यभिचार के लिए खुला छोड़ दिया गया। जिससे कश्मीर के इतिहास पर धूल की मोटी परत चढ़ गई। पहली मूर्खता कश्मीर को मुगलों के नाम करके हमने की । दूसरी मूर्खता मुगलों के उत्तराधिकारियों को या मानस पुत्रों को इसकी सत्ता सौंप कर की । जिसके कारण कश्मीर ' यथा राजा तथा प्रजा' का अनुकरण करते हुए जैसे राजा थे वैसी ही सोच का शिकार हो गया अर्थात खून खराबे और व्यभिचार का केंद्र बन गया। ऋषि कश्यप के मानस पुत्रों को यहां से चुन चुनकर भगाया गया, मारा गया या उनका धर्म परिवर्तन किया गया। स्वाधीनता से पूर्व जिस प्रकार के अत्याचार यहां पर होते रहे थे, उनसे भी अधिक घृणित अवस्था के अत्याचार स्वाधीनता के पश्चात यहां के हिन्दू लोगों ने झेले। धारा ३७० की कैद में हिंदू समाज को बंदी कर कश्मीर को हिंदुओं की कत्लगाह बना दिया गया।
हम सब के लिए यह सौभाग्य का विषय रहा कि ५ अगस्त २०१९ को कश्मीर से संविधान विरोधी मानवता विरोधी धारा ३७० को हटाने का साहसिक निर्णय केंद्र की मोदी सरकार ने लिया। जिसमें देश के गृहमंत्री अमित शाह का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उस समय देश के लोगों को लगा कि देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के पश्चात देश को एक सशक्त गृहमंत्री पहली बार मिला है । जिसने भारत की रियासतों के एकीकरण के सरदार वल्लभभाई पटेल जी के कार्यक्रम को अब जाकर पूर्ण किया है। इसके उपरांत भी लोगों के भीतर एक कसक है कि भारत के एकीकरण की यह प्रक्रिया तभी पूर्ण होगी जब पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का एक अंग बन जाएगा । अब इस ओर यदि देश के गृहमंत्री ने संकेत दिया है तो राष्ट्रवादी लोगों को बहुत ही आत्मिक प्रसन्नता की अनुभूति हुई है। हम सभी चाहेंगे कि कश्मीर को कश्यप मार्ग का नाम देकर पाक अधिकृत कश्मीर को भी यथाशीघ्र भारत का अंग बनाया जाए।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
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