चने की पोटली और सुदामा।
जय प्रकाश कुंवर
सुदामा और कृष्ण की उनके बचपन से लेकर उनके बड़े होने तक की उनके मित्रता की अनेकों कहानियाँ हम सबों ने पढ़ी और सुनी है। हम सब ने यह भी पढ़ा और सुना है कि जब वे दोनों बचपन में गुरु के आश्रम में रह कर पढ़ते थे तब एक बार वे दोनों गुरुमाता की आज्ञा से जंगल में जलावन के लिए लकड़ी काटकर लाने गए थे। गुरूमाता ने जाते समय जंगल में दोनों को खाने के लिए एक चने की पोटली दी थी, जिसे सुदामा छुपा कर अकेले ही खा गए थे और कृष्ण को एक दाना भी नहीं दिया था।क्यों सुदामा ने कृष्ण को उस चने की पोटली का एक दाना भी खाने के लिए नहीं दिया और बेईमानी करके अकेले खा गए, इसका कारण हम सबों में से शायद बहुतों को नहीं मालूम हो। इसलिए हो सकता है कि अनेकों के मन में सुदामा के गरीब भुखा ब्राह्मण पुत्र होने और छल कपट वाले मित्र होने की धारणा आती हो। परंतु ऐसा नहीं है। सुदामा ने अकेले पुरा चना खाकर पूरे संसार को गरीब होने से बचा लिया था और स्वयं गरीबी मोल ले ली थी। तो आइये जानते हैं, सुदामा के अकेले चना खा जाने की कथा।
उन दिनों कुछ चोर अपने चोरी के क्रम में एक रात एक गरीब बुढ़िया ब्राह्मणी के घर में घुस गये। वहाँ जैसे ही उनके हाथ में एक बंधी हुई पोटली हाथ लगी तबतक आवाज से ब्राह्मणी की आंख खुल गई। उसने देखा कि उनके घर में कुछ लोग घुस गये हैं। वह शोर मचाने लगी और भूखी गरीब अपनी पोटली खोजने लगी । इधर चोरों ने अंधेरे में उस पोटली में सोने के सिक्के बंधा हुआ समझ कर पकड़ाने के भय से उस पोटली को लेकर भाग गये। जब उन्होंने पोटली खोली तब पाया कि उसमें बुढ़िया ब्राह्मणी द्वारा भिक्षा में मांगे गए चने बंधे थे। अपने को पकडे़ जाने के भय से वो सब चोर नजदीकी संदीपन मुनि के आश्रम में छुप गए, जहाँ सुदामा और कृष्ण पढ़ते थे। आश्रम में जब गुरूमाता को किसी के ढुकने की आहट हुई तो वहाँ भी अपने पकड़े जाने के भय से चोर चने की पोटली को वही छोड़ कर भाग गए।
उधर अपने घर में गरीब भूखी बुढ़िया ब्राह्मणी चने की पोटली चोरी हो जाने से भूखी बिलख रही थी। भूख से रोते छटपटाते हुए उसने श्राप दिया कि जो भी उस पोटली का चना खाएगा वह दरिद्र हो जाएगा।
इधर संदीपन मुनि के आश्रम में जब आश्रम के साफ सफाई के क्रम में गुरूमाता ने उस पोटली को देखा तो उसमें खाने का सामान बंधा हुआ देख उसे सुरक्षित रख दिया। जब सुदामा और कृष्ण जंगल में लकड़ी काटने जा रहे थे , तब गुरूमाता ने वही चने की पोटली उन्हें दिया और भूख लगने पर दोनों को बांट कर खाने को कहा। जैसे ही सुदामा के हाथ में वह पोटली आयी तो उन्हें ज्ञान हो गया कि इस चने की पोटली के साथ श्राप जुड़ा हुआ है। चूंकि सुदामा यह अच्छी तरह जानते थे कि उनके बचपन के ये मित्र कृष्ण कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान हैं। अतः यदि वो इस शापित अन्न ( चने ) का एक दाना भी अगर खा लेते हैं, तो सारी दुनिया गरीब दरिद्र हो जाएगी। ऐसा सोचकर समय मिलने पर जंगल में संसार के कल्याण के लिए सुदामा ने पूरी पोटली का चना अकेले ही खा लिया और कृष्ण को एक दाना भी नहीं दिया। इस प्रकार सुदामा ने दरिद्रता का श्राप पूरे ही अपने सिर ले लिया और अपने मित्र कृष्ण को उस श्राप से बचा दिया तथा दुनिया को गरीब एवं दरिद्र होने से भी बचा लिया।
अतः सुदामा द्वारा जंगल में अपने मित्र कृष्ण से छुपाकर पूरा चना अकेले खा जाना अपने मित्र से कोई बेईमानी की घटना नहीं थी, बल्कि उन्होंने ऐसा अपने मित्र को श्राप से बचाने और संसार के कल्याण के लिए किया था।
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