कर्मण्यता की ओर
विरासत में मिले अमूल्य धन का मूल्य समझ न पाया।भाग्य और भगवान भरोसे अब तक समय बिताया।।
सपनों की भूल- भुलैया में,
अब तक जो जीवन उलझाया।
मत बुनो पूर्व का स्वप्न,
अब देखो, नया विहान फिर आया।।
शून्य से शिखर चढ़ने के लिए ,
शक्ति को नहीं जगाया।
बढ़ो प्रगति पथ संकल्पित हो,
है स्वर्णिम अवसर पाया ।।
बीते कल के अनुभव से आगे का कदम बढ़ाना है।
खो दिया जिसे,
तू भुला उसे जीवन का लक्ष्य बनाना है।।
तम से प्रकाश की ओर बढ़ो,
जीवन गति को तेज करो।
किंकर्तव्य विमूढ़ता त्यागो,
अपने विवेक से दूर न हो।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्र
डॉक्टर विवेकानंद पथ गोल बगीचा गया।
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