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रवि रथ चल पड़ा, उत्तरायण की ओर

रवि रथ चल पड़ा, उत्तरायण की ओर

सृष्टि पटल देवलोक प्रभा,
सर्वत्र मंगलता सरित प्रवाह ।
जन पटल नव चेतना स्पंदन,
आशा उत्साह उमंग अथाह ।
प्रकृति छटा अद्भुत मनोरम,
जीवन अति आनंद सराबोर ।
रवि रथ चल पड़ा, उत्तरायण की ओर ।।


उत्सव त्योहार परिणय सह,
शुभ काम काज श्री गणेश ।
धर्म आस्था भक्ति परम बिंदु,
नव श्रृंगार सर सरिता भावेश।
पुनीत पावन स्नान अनुपमा,
लोक दान पुण्य अनूप छोर ।
रवि रथ चल पड़ा,उत्तरायण की ओर ।।


सूर्य धनु प्रस्थान मकर प्रवेश,
उत्सविक आयोजन विविध।
मकर संक्रांति पोंगल उपमा,
जप तप अर्पण तर्पण सविध ।
नभ पटल रंग बिरंगी पतंगें,
परिवेश वो काटा मारा शोर ।
रवि रथ चल पड़ा, उत्तरायण की ओर ।।


प्रकृति अंतर यौवन उभार,
जन अठखेलियां मस्त मलंग ।
गुड़ तिल मिश्रित मिष्ठान वितरण,
उर हिलोर मानव सेवा रंग ।
असीम कामना सुख समृद्धि,
खुशहाली आच्छादित जीवन भोर ।
रवि रथ चल पड़ा, उत्तरायण की ओर ।।


कुमार महेंद्र

(स्वरचित मौलिक रचना)
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