एक छोटी सी पहल !
(अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव)जब भी तेरा मन ना लगे,
तूं अम्मा के घर आ जाना !
एक छोटी सी पहल ये करना,
मन का दर्द बता जाना !
आँचल के कोने थिरकेंगे
तेरा दर्द उठाने को !
सासों की डोरी सिसकेगी,
तुझको कुछ समझाने को !
गोदी की दुनियाँ का हलचल
तुझको राह दिखायेगी !
आँखो के पानी मे अम्मा
दर्द बहा ले जायेगी ।
धड़कन से गम के भारों को
अंदर कहीं छिपा लेगी ,
खुद रोयेगी लेकिन तेरे -
आगे-पीछे गा लेगी ।
पर अम्मा जब ना होगी तो,
सभी बागवाँ रूखे होंगे ।
बार-बार जाकर भी आँगन,
भावों के घर भूखे होंगे ।
अपने और परायों के
दीवारों में घर बंट जायेगा ।
अम्मा के आगन का पंक्षी,
इस विभेद से कट जायेगा !
एक छोटी सी पहल करो
घर ना हो माँ तो मत जाना।
हम मेहमा हैं चन्द दिनों के,
मन आये तो समझाना ।
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