कितनी बार अचीन्हा जैसा
डॉ रामकृष्ण मिश्रकितनी बार अचीन्हा जैसा
बन कर जब आ जाते थे।
सच कहता हूँ मन के कोने -
कोने में छा जाते थे।।
मधु सपनों से कौतूहल की
चंचलता जगती तो है
किन्तु उचटती नींदों जेसेी
व्याकुलता दे जाते थे।।
जाने कितने दिन बीते या
बरस अनेक चुके होंगे।
स्मृतियाँ स़़ोई नहीं अभी तक
कौन इन्हेऔ दुलराते थे।।
बात -बात पर कसमे
ओठों पर आती जाती रहती।
मन को छू जाता जाने क्यों
अपने गीत सुनाते थे।।
भोली- भाली सी सन्ध्या का
मीठापन कितना भाता।
अपने स्नेहिल मृदु चिंतन से
प्राय- ही भरमाते थे । ।
कहाँ लुप्त हो गयी हँसी वह
मदिर मंद मुस्कान कभी।
जो रस की वर्षा करती
बन कर जब आ जाते थे।
सच कहता हूँ मन के कोने -
कोने में छा जाते थे।।
मधु सपनों से कौतूहल की
चंचलता जगती तो है
किन्तु उचटती नींदों जेसेी
व्याकुलता दे जाते थे।।
जाने कितने दिन बीते या
बरस अनेक चुके होंगे।
स्मृतियाँ स़़ोई नहीं अभी तक
कौन इन्हेऔ दुलराते थे।।
बात -बात पर कसमे
ओठों पर आती जाती रहती।
मन को छू जाता जाने क्यों
अपने गीत सुनाते थे।।
भोली- भाली सी सन्ध्या का
मीठापन कितना भाता।
अपने स्नेहिल मृदु चिंतन से
प्राय- ही भरमाते थे । ।
कहाँ लुप्त हो गयी हँसी वह
मदिर मंद मुस्कान कभी।
जो रस की वर्षा करती
हम मोहित मोद मनाते थे।।
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