सवाल ही सवाल का जवाब है।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
सवाल ही सवाल का जवाब है।
गुल नहीं है ,खार का शबाब है।
उफनता जो दिख रहा चारों तरफ,
जामेशराब नहीं,झूठ का सराब है ।
मर रहे थे लोग जिस पे कल तलक,
झुर्रियों से चेहरा बेआब है।
फित्रते नजर का है फकत कमाल,
अच्छा नहीं कुछ भी नहीं खराब है।
वह नहीं यह राम जो घट- घट रमे,
बस, खातिरेऔरंग सब वबाल है ।
यहाँ सबका हाथ सबकी जेब में,
कौड़ियों में बिक रहा खिताब है।
(सराब =मृगतृष्णा; औरंग =राजसिंहासन)
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