बेटा कब आएगा तू
घर की चौखट तुझे पुकारे, पूछ रही तुमको दीवारें।आंगन सारा चिल्लाता है, कहां गए हैं नैनो के तारे।
लौट आओ लाठी के सहारे
मुरझाई आंखें ढूंढ रही, निज कलेजे के टुकड़े प्यारे।
हाथों से पाला जिनको, सब कुछ जिनपे हमने वारे।
बेटा कब आएगा तू घर, रह रह कर के हिया पुकारे।
आंचल की छांव बिखरी, टूट गये वो अरमान हमारे।
लौट आओ लाठी के सहारे
बुड्ढा बरगद देख रहा है, अटखेली वो गलियारे।
पिता के कंधों पे पाते, मुस्कानों के मोती सारे।
चल नहीं पाता अब वो, हाथ पैर सब कुछ हारे।
बुढ़ापे की दहलीज पे, अपनों को दिल पुकारे।
लौट आओ लाठी के सहारे
जमीं बेची गहने बेचे, हर दिन साल महीने बेचे।
उजियारा जीवन में करने, गिरवी जेवर सीने बेचे।
अंगुली पकड़ने वाले हाथ, थक चुके हैं अब सारे।
कुलदीपक रोशन करो, सुत मात-पिता के प्यारे।
लौट आओ लाठी के सहारे
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है।
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