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पान

पान

जय प्रकाश कुवंर
हिन्दू धर्म में पान के पत्ते का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। पान को शुभ कार्य और पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। पूजा पाठ में पान के पत्ते का महत्व इस वजह से है कि इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही पान के पत्ते के हरे रंग को न‌ई शुरुआत और सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।हिन्दूओं के विभिन्न कर्म -कांडों में इसका प्रयोग किसी न किसी रूप में किया जाता है। पान का जिक्र स्कंद पुराण में किया गया है। जिसके अनुसार समुद्र मंथन के समय पान के पत्ते का प्रयोग किया गया था। इसके पत्ते में विभिन्न देवी देवताओं का वास माना जाता है। पान के पत्ते के उपरी हिस्से में इंद्र और शुक्र देव, मध्य हिस्से में माँ सरस्वती, निचले हिस्से में महा लक्ष्मी और अंदर भगवान विष्णु का वास माना जाता है, इसलिए पूजा में पान के पत्ते का विधि विधान से प्रयोग किया जाता है।
पान भारत के इतिहास और परंपराओं से गहरे से जुड़ा हुआ है। इसका उद्भव स्थल मलाया द्वीप है। पान विभिन्न भारतीय भाषाओं में अलग अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में इसे ताम्बूल, तेलगु में पक्कू, तमिल और मलयालम में वेटिलाई, मराठी में नागवेल और गुजराती में नागुरवेल आदि नामों से जाना जाता है। यह तांबूली या नागवल्ली नामक लता का पत्ता है। इस लता के पत्ते छोटे, बड़े अनेक आकर प्रकार के होते हैं। पान पत्ते की आकृति मानव के हृदय से मिलती जुलती होती है। देश गंध आदि के अनुसार पानों के भी गुणधर्ममूलक अनेकों जाति नाम हैं, जैसे जगन्नाथी, सांची, मगही, सौंफिया, कपुरी आदि।
भारतवर्ष में पान की खेती लंबे समय से होती आ रही है। पान का पौधा काली मिर्च परिवार का एक पुष्पिय और औषधीय पौधा है। यहाँ क‌ई राज्यों में पान की खेती की जाती है। इसकी खेती करना बेहद आसान है। पान की अच्छी खेती के लिए भूमि की गहरी जुताई करके भूमि को खुला छोड़ दिया जाता है। इसके बाद दो बार हल्की जुताई कर मेड़बंदी कर दी जाती है। तैयार क्यारियों में पान की बेलों को फरवरी के अंतिम सप्ताह में पंक्ति विधि से डबल बेलों के रूप में लगाया जाता है। उपयुक्त ये होता है कि पान के बेलों की रोपाई सुबह ग्यारह बजे से पहले या दोपहर तीन बजे के बाद की जाय। पान की खेती के लिए नम ठंडा और छायादार वातावरण चाहिए। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में हल्की और बार बार सिंचाई करनी चाहिए । पान के पौधे को इसके पत्तियों के लिए ही उगाया जाता है। पान में फल नहीं लगता है। पान के पौधे पर सफेद फूल लगते हैं, जिन्हें कैटकिंस कहा जाता है। पान का पौधा भारत के उत्तर और पूर्वी प्रांतों में विशेष प्रकार की संरक्षणशालाओं में उगाया जाता है, जिसे भीठ या बरोज कहते हैं। पान की खेती करने वाले लोगों को बरज अथवा बर‌ई कहते हैं। बनारस में पान की सेवा बड़े श्रम से की जाती है। मगह के एक किस्म के पान को क‌ई मास तक बड़े यत्न से सुरक्षित रख कर पकाते हैं, जिसे मगही पान कहा जाता है। पान दक्षिण भारत और उत्तर पूर्वी भारत में खुली जगह में उगाया जाता है, क्योंकि इसके लिए अधिक नमी और कम धुप की आवश्यकता होती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से पान एक महत्वपूर्ण वनस्पति है। पान के रासायनिक गुणों में वाष्पशील तेल का मुख्य योगदान रहता है। ये सेहत के लिए लाभदायक है। खाना खाने के बाद पान का सेवन पाचन में सहायक होता है। पान के औषधीय गुणों का वर्णन चरक संहिता में भी किया गया है। पान की पतियों में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में होता है। पान सूखी खांसी में भी लाभकारी होता है। हितोपदेश के अनुसार पान के औषधीय गुण हैं बलगम हटाना, मुख शुद्धि, अपच, तथा श्वास संबंधी बीमारियों का निदान। राजाओं और महाराजाओं के हाथ से तांबूल प्राप्ति को कवि, विद्वान, कलाकार आदि बहुत बड़ी प्रतिष्ठा की बात मानते थे। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी अपने अन्वेषण द्वारा पान के गुण दोषों का अनेकों विवरण दिया है। पान श्रृंगार और प्रसाधन का भी अत्यावश्यक अंग है।
इस प्रकार यह देखा जाता है कि पान का पत्ता न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण एवं लाभदायक है।
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