नेताजी सुभाषचंद्र बोस
जबसे हुए तुम हो खामोश ,भारत को बहुत अफसोस ,
अपने हो रहे हैं पुनः पराए ,
ठंढे पड़े जैसे सबके जोश ।
भूल रहे अब सब शहादत ,
भूल रहे लोग सब बलिदान ,
शेष रहीं अब छींटाकशियाॅं ,
अब कहाॅं नेता होने कुर्बान ।
कैसे दें हम तुमको ये दोष ,
कहाॅं रहा ये भारत में रोष ,
सरल हुआ श्रद्धांजलि देना ,
बैठे भाग्य को रहे हैं कोस ।
हीन हुआ है यह भारत अब ,
तुम्हारे जैसे प्रबल नेता से ,
कलियुगी हुए सारे ये नेता ,
डरते ही नहीं जैसे त्रेता से ।
पुकार रहा पुनः यह भारत ,
आकर दिखाओ पुनः जोश ,
तुझको सदा ये नमन वंदन ,
पुनः आओ सुभाषचंद्र बोस ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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