संघर्ष
जीवन का भी अजीब हिसाब किताब है । जीवन में कभी भी कोई सुख नाम की कोई चीज है ही नहीं । कहा जाता है कि जीवन में सुख बहुत है , किंतु हमें तो नहीं दिखता कहीं भी कि जीवन में सुख भी होता है । यदि सुख है भी तो क्षणिक है , जिसे काल्पनिक भी कहा जा सकता है । जीवन तो सदैव दुःख से ही भरा है ।
आधुनिक युग में मानव के मस्तिष्क में जो सुख का परिभाषा भरा हुआ है , उसका नाम केवल आलस्य कहा जा सकता है , जिसका नतीजा है भविष्य में शरीर को रोगों का घर ही होना है । फलत: जीवन को निरोग और दीर्घायु बनाने के लिए शारीरिक श्रम भी करना अनिवार्य हो जाता है ।
वैसे भी बिना संघर्ष के जीवन ही कहाॅं है ! जबतक जीना है तब तक संघर्ष करना है । अर्थात संघर्ष करते हुए ही जीने की उम्मीद भी करनी है , क्योंकि कहा भी जाता है कि जबतक जीना है तब तक सीना है ।
जीवन चाहे सुख में बीते या दुःख में बीते , किंतु बिना संघर्ष किए जीवन जीना भी मुमकिन नहीं है । अर्थात संघर्ष तो दोनों को ही करना है ।
यह जीवन ही समस्याओं का घोंसला है । सदैव एक एक समस्याऍं आती रहती हैं , जिनमें किसी का समाधान करने में सफल होते हैं तो किसी में असफल भी हो जाते हैं , किंतु समस्याओं का आना बंद या कम नहीं होता , वह निरंतर आता और जाता रहता है तथा हम सदैव उन्हीं समस्याओं को सुलझाते रहते हैं या यों कहें कि समस्याओं को सुलझाते-सुलझाते जीवन का अंत भी हो जाता है ।
मानव मन में सुख की उत्कंठा लिए हुए ही अपने जीवन का अंत भी कर देता है ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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