धन्य विवेकानंद
गुलामी की जंजीरों में जकड़ा,कराह रहा था जब भारत।
रुढ़िवादिता के शिकंजे में फंसा,
छटपटा रहा था जब भारत।
भारतीय क्षितिज पर तभी,
एक प्रकाशपुंज प्रस्फुटित हुआ।
ज्ञानरुपी प्रकाश से जिसने,
सनातन धर्म को पुनर्जीवित किया।
अपने जादुई वचनों के कारण,
शिकागो में धर्म प्रवर्तक बने।
कूप मंडूक से बाहर निकलो,
करो यथार्थ के दर्शन तुम।
सभी धर्मों के मठाधीशों को,
दिया संदेश शिकागो में।
शांति, प्रेम व सेवा का उसने,
सबको अपना संदेश दिया।
विश्व के मानस पटल पर,
भारत को प्रतिष्ठित किया।
नाम श्रद्धा से लेंगे सभी,
स्वामी विवेकानंद का।
क्योंकि वे संरक्षक हैं,
सनातन हिन्दू धर्म का।
भारत के कण-कण में बसा है,
आदर्श विवेकानंद का।
जन-जन के मानस में बसा हैं,
साहित्य विवेकानंद का।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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