मै राही संघर्ष का
मै राही संघर्ष का, नित पथ में बढ़ता जाता हूं।हर आंधी तूफानों से, फौलादी सा टकराता हूं।
मैं राही संघर्ष का
तीर सहे तलवार सहे, शब्दों के हर तीखे वार सहे।
हौसलों से दुश्चक्र मिटाए, जिंदा तन मन प्राण रहे।
जोश जज्बा हृदय में भरकर, गीत मन के गाता हूं।
सुख-दुख आते जाते रहते, सोच कदम बढ़ाता हूं।
मैं राही संघर्ष का
जीवन की चुनौती हर जंग में, जीवन के रंग में।
अपनों के संग में, मौसम के बदलते हर रंग में।
अधरो पर मुस्कान लिए, मैं मंद मंद मुस्काता हूं।
रिश्तो की डगर पर, संभल संभलकर जाता हूं।
मैं राही संघर्ष का
मतलब के इस जहां में, आन बान और शान में।
मनुज स्वाभिमान में, श्रद्धा रखकर भगवान मे।
दुर्गम राहे पथरीली सी, बाधाएं सम्मुख पाता हूं।
घोर घटाएं संकट घेरे, मुश्किल से भिड़ जाता हूं।
मैं राही संघर्ष का
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनूं राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है।
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