Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

आचार्य रामलोचन शरण की 'मनोहर पोथी' पढ़कर बिहार ने हिन्दी सीखी, 94वर्ष की आयु में भी साहित्य की सेवा में सक्रियता से रत हैं डा शिववंश पाण्डेय

आचार्य रामलोचन शरण की 'मनोहर पोथी' पढ़कर बिहार ने हिन्दी सीखी, 94वर्ष की आयु में भी साहित्य की सेवा में सक्रियता से रत हैं डा शिववंश पाण्डेय

  • साहित्य सम्मेलन में जन्मोत्सव पर सम्मानित हुए डा पाण्डेय, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन

पटना, 9 फरबरी। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अप्रतिम अवदान देनेवाले मनीषी विद्वान, प्रकाशक और संपादक आचार्य रामलोचन शरण 'बिहारी' की 'मनोहर पोथी' पढ़कर बिहार सहित समस्त पूर्वांचन ने हिन्दी सीखी। बाल-साहित्य की उनकी शताधिक पुस्तकों को हिन्दी-शिक्षा का बड़ा श्रेय जाता है। वे खड़ी बोली के अभिनव गद्य शैली के प्रवर्तक माने जाते हैं। आचार्य शिवपूजन सहाय ने उन्हें 'बिहार का द्विवेदी' कहा था। वहीं बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के विद्वान प्रधानमंत्री 94 वर्ष की आयु में भी जिस सक्रियता से हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, वह दुर्लभ है। डा पाण्डेय की सेवा पं रामचंद्र शुक्ल और हज़ारी प्रसाद द्विवेदी की भाँति आदरणीय है।


यह बातें, रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, आचार्य शरण की जयंती और पं शिववंश पाण्डेय के 94वें जन्म-दिवस पर आयोजित अभिनन्दन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि शरण जी ने हिन्दी भाषा के अध्यापन और उन्नयन के समक्ष उपस्थित अनेक अभावों की भी पूर्ति की। 'मास्टर साहेब' और 'बिहारी जी' लोक-नाम से लोकप्रिय शरण जी ने समाज, शिक्षा, साहित्य और हिन्दी-सेवा का अत्यंत दुर्लभ और अतुल्य उदाहरण प्रस्तुत किया।


डा शिववंश पाण्डेय को पुष्पहार और वंदन-वस्त्र से सम्मानित करते हुए डा सुलभ ने कहा कि यह साहित्य सम्मेलन के लिए और बिहार के लिए गौरव का विषय है कि इस आयु में भी वे सक्रिए और अहर्निश साहित्य-सेवा कर रहे हैं। इनके संपादन में सम्मेलन द्वारा 1008पृष्ठों के अत्यंत मूल्यवान ग्रंथ 'बिहार की साहित्यिक प्रगति' का प्रकाशन हिन्दी को दिया गया एक ऐतिहासिक अवदान है। साहित्यालोचन में निरन्तर हो रहे इनके अवदान को आनेवाली पीढ़ियाँ गौरव से स्मरण करती रहेंगी।


आचार्य शरण के पुत्र सीता शरण ने कहा कि बनारस के कुछ विद्वानों ने उनके समक्ष बिहार के साहित्यकारों की बड़ी आलोचना की। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने बिहार के साहित्यकारों की हिन्दी-सेवा पर एक ग्रंथ का प्रकाशन किया और बिहार की साहित्यिक सेवा की आलोचना करने वालों को कड़ा उत्तर दिया। उन्होंने 'पुस्तक भण्डार' नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और बिहार के ही नहीं देश के अनेक नामी-गिरामी साहित्यकारों की पुस्तकें छापी। उन्होंने अपना उपनाम 'बिहारी' रख लिया था।


कृतज्ञता-ज्ञापित करते हुए सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि आचार्य शरण की 'मनोहर-पोथी' पढ़कर हम सबने हिन्दी सीखी। इस और ऐसी अनेक पुस्तकों के माध्यम से शरण जी ने बिहार में हिन्दी भाषा और साहित्य का मार्ग प्रशस्त किया। आधुनिक हिन्दी के उन्नयन में उनका योगदान अतुल्य है। सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय, डा मधु वर्मा, कमला कांत तिवारी, अधिवक्ता पण्डित जी पाण्डेय, सुप्रसिद्ध लेखापाल आर एन मिश्र, आरपी घायल, डा पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर, डा सुमेधा पाठक, पं बच्चा ठाकुर, पं गणेश झा, डा मुकेश कुमार ओझा, प्रो सुशील कुमार झा, श्याम बिहारी प्रभाकर, सागरिका राय , डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, चंदा मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित लघुकथा कथा-गोष्ठी में प्रो सुधा सिन्हा ने 'जुर्म', डा मीना कुमारी परिहार ने 'घरौंदा', मीरा श्रीवास्तव ने 'बुढ़ापा', शमा कौसर 'शमा' ने 'वो कौन था', सरिता कुमारी ने 'गंगिया', कुमार अनुपम ने 'पर्यावरण', श्याम बिहारी प्रभाकर ने 'अभिनन्दन', डा आर प्रवेश ने 'कथा-वाचक', रौली कुमारी ने 'यमराज का संदेश', अरविंद अकेला ने 'सुकून की ज़िंदगी' तथा नीता सहाय ने 'सिलेंडर बम' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।


समारोह में, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, नीलम लोचन, मिहिर लोचन शरण, शम्भुनाथ पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, शंकर शरण आर्य, श्याम मनोहर मिश्र, सरिता कुमारी, डा प्रतिभा रानी, उषा देवी, मदन मोहन ठाकुर, प्रवीर कुमार पंकज, दिनेश्वर लाल 'दिव्यांशु', प्रेम अग्रवाल, गणेश प्रसाद आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ