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महाकुम्भ आँखोदेखी

महाकुम्भ आँखोदेखी

- मनोज कुमार मिश्र
हमने देखा लोगों का जमघट फिर भी अनुशासित हैं सभी।
न कोई शोर शराबा न जोर जबर हंसी खुशी जा रहे सभी।।
भीड़ का कब्जा सड़क पर, चौक और चौबारे पे है।
त्रिवेणी संगम स्नान करने आये प्रयागराज के द्वार पे हैं।।
है यह भूमि प्रयाग की पावन, त्रिवेणी तो सुखधाम है।
कण कण रज की है महत्ता और महाकुम्भ का नाम है।।
शत शत कोटि नमन प्रयाग को अविरल धारा प्रमाण है।
लेकर प्रभु का नाम हैं आये गूंजा गंगा जमुना सरस्वती नाम है।।
इतना वृहत है यह समागम धरती अम्बर भी देख हैरान है।
कम पड़ गए हैं उसके तारे यहां इतने चल रहे कदम अविराम हैं।।
हैं गोद मे लड़के और बच्चे माथे पे गठरी रखी है छोटी बड़ी।
तुमुल नाद सनातन का करते राह सबने संगम की पकड़ी ।।
अद्भुत ये मंजर आस्था का नहीं कोई यहां पुजारी का काम।
लेनी है बस डुबकियां और हो गए आप प्रभु के नाम।।
मल्लाह ले जाते भगत को जैसे करवा रहे वैतरणी पार।
कभी हुए थे इसी तरह प्रभु राम हमारे सरयू के पार।।
छह नक्षत्रों का मेल यह अनुपम आया चलके हमारे द्वार।
144 वर्षों के बाद संयोग सुदर्शन बन कर आया नभ परिवार।।
हम भी बने इस मंगल के हिस्से त्रिवेणी संगम स्नान किया।
जयकार किया गंगा जमुना की पुरखों को तर्पण दिया।।
पुण्य पाप का अर्थ कहाँ यह सांस्कृतिक क्रांति की मिसाल है।
है छोटा बड़ा कोई नहीं सब ही सनातन के ही लाल हैं।।
ऊंच नीच का कोई भेद नहीं यह बांटने नहीं जोड़ने का पर्व है।
है पुण्य सनातन की यह धरा जिस पर हमको बहुत गर्व है।।

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