जिंदगी के मायनें
पलटकर देखना मुझकोपुरानी आदत है तेरी।
जमाने की नजरों से
बचना आदत है तेरी।
कही कोई देख न ले
ऐसा तुम सोचती हो।
मोहब्बत करने का अंदाज
अलग ही तुम रखती हो।।
हर दिन तुम अपनी
सूरत बहुत दिखती हो।
कसम खाकर भी तुम
बहाना खूब बनती हो।
और अपनी मनगणत बातें
हमें खूब सुनती हो।
पर मिलने से तुम देखो
न जाने क्यों घबराती हो।।
सुबह से लेकर रात तक
भेजते रहते हो संदेश।
कभी कभी तुम अपनी
लूभानी तस्वीर भेजते हो।
जिसे लगाकर सीने से
मैं पूरी रात सोता हूँ।
सुबह होते ही देखता हूँ
तुम्हारी वो ही अदायें।।
मुझे आती नहीं शायद
मोहब्बत तुमसे करने को।
इसलिए शर्माता हूँ
मैं बातें तुमसे करने को।
बहुत कुछ सिखाना है
मुझे हे प्रिये तुम से।
मोहब्बत के क्या मयाने है
हमारी जिंदगी में।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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