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परिवार: एक साथ रहने से अधिक, एक साथ जीने की कला

परिवार: एक साथ रहने से अधिक, एक साथ जीने की कला

परिवार केवल चार दीवारों के भीतर एक साथ रहने वाले लोगों का समूह नहीं होता, बल्कि यह एक ऐसी संस्था है जहाँ प्रेम, समझ, और परस्पर सम्मान का समावेश होता है। सच्चे अर्थों में परिवार वही कहलाता है जहाँ सदस्य एक-दूसरे के सुख-दुःख में साथ खड़े होते हैं, एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हैं और हर परिस्थिति में एक-दूसरे की परवाह करते हैं।

आज के व्यस्त जीवन में अक्सर लोग एक ही छत के नीचे रहते हुए भी मानसिक रूप से एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। यह केवल भौतिक सह-अस्तित्व है, जो परिवार की वास्तविक परिभाषा को नहीं दर्शाता। एक आदर्श परिवार में परस्पर सामंजस्य और गरिमा का विशेष महत्व होता है। जब परिवार के सदस्य एक-दूसरे के विचारों का सम्मान करते हैं, एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति रखते हैं और किसी भी परिस्थिति में सहयोग का हाथ बढ़ाते हैं, तभी परिवार की नींव मजबूत होती है।

परिवार के भीतर परस्पर सम्मान और आदरभाव का होना अत्यंत आवश्यक है। माता-पिता का सम्मान, बच्चों के प्रति प्रेम और भाइयों-बहनों के बीच विश्वास का भाव ही परिवार को एक सशक्त इकाई बनाता है। यदि परिवार के प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखें और मतभेदों को संवाद के माध्यम से हल करें, तो न केवल परिवार का माहौल सौहार्दपूर्ण बनेगा, बल्कि संपूर्ण समाज भी एक स्वस्थ वातावरण की ओर अग्रसर होगा।

अतः परिवार केवल साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ दिल से जुड़ने, समझने और परवाह करने की भावना का नाम है। जब यह मूल तत्व किसी परिवार में विद्यमान होते हैं, तभी वह एक सच्चे और आदर्श परिवार के रूप में परिभाषित किया जाता है।

सनातन
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)

पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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