छिपी हुई चाहत सबमें होती ,
कला चाहिए उसे उभारने की ।उठे यदि इसके विपरीत तरंगें ,
उर्जा चाहिए उसको मारने की ।।
कृपा हुई प्रकृति की यदि तो ,
वह चाहत बाहर आ जाती है ।
आती बाहर जो प्रतिभा बीच ,
आकर्षण बनकर छा जाती है ।।
छिपी हुई चाहत है निकलती ,
चाहत के रूप प्रतिभा बनकर ।
जब तक रही वह छिप कोने में ,
बाहर निकलती है तब तनकर ।।
मानव जीवन जब समाप्त होते ,
तन जलाए या दफनाए जाते हैं ।
मन के मलाल मन में ही रहकर ,
जीवन में स्वयं दफन हो जाते हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com