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उर कलियां खिल रहीं,कुसुमाकर के वंदन में

उर कलियां खिल रहीं,कुसुमाकर के वंदन में

उर हिलोर उत्साह उमंग,
पुलकित प्रफुल्लित परिवेश ।
चैतन्य प्रभा परम बिंदु,
पुनीत पावन ललित आवेश ।
प्रकृति अंतर यौवन उभार,
तत्पर प्रणय भाव मंडन में।
उर कलियां खिल रहीं,कुसुमाकर के वंदन में ।।
अंग प्रत्यंग मोहक सोहक,
अंतर्मन सरित आनंद धारा ।
शुद्ध सात्विक आचार विचार ,
मस्त मलंग जीवन सारा ।
नयनन पटल नेह निर्झर,
प्रियतम आदर अभिनंदन में ।
उर कलियां खिल रहीं,कुसुमाकर के वंदन में ।।
सर्वत्र वासंती मनोरम छटा,
शुभ मंगल अभिलाषा ।
चिंतन मनन सकारात्मक,
सौम्य संवाद मृदुल भाषा ।
धरा दुल्हन सा श्रृंगार कर,
आतुर प्रीत रीत स्पंदन में ।
उर कलियां खिल रहीं,कुसुमाकर के वंदन में ।।
लोक राग रंग अद्भुत अनुपम,
दर्शन संग घायल कायल ।
मोहक वासंती स्वर लहरियां,
संगीत झंकार सम पायल ।
रज रज विमल अनुपमा,
माध्य ज्ञान ध्यान रंजन में ।
उर कलियां खिल रहीं,कुसुमाकर के वंदन में ।।
*कुमार महेंद्र*

(स्वरचित मौलिक रचना)
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